अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

श्रद्धा

इन दिनों नींद उसकी आँखों से दूर-दूर भागी रहती है। बिस्तर में उसने एक बार फिर करवट बदली। 

पिछले दो महीनों से यही हाल है। कैंसर की चिकित्सा और ऑपरेशन के कारण स्वयं को स्तनहीन और गंजा देखने की कल्पना ही दिन का चैन और रातों की नींद दूर भगाने के लिए काफ़ी थी। 

उस दिन सहेली का साथ देने के लिए ही उसके साथ अस्पताल चली गई थी। सहेली जब डॉक्टर के कक्ष में चली गई, तब प्रतीक्षाकक्ष में बैठे-बैठे सामने की दीवार पर 'सेल्फ़ एग्ज़ामिनेशन ऑफ़ योर ब्रेस्ट' के पोस्टर पर नज़र गई। समय बिताने के लिए उसने उसे पूरा पढ़ डाला। 

जब घर आई तो कपड़े बदलते समय, यूँ ही, शीशे के सामने निर्वस्त्र हो अपने दोनों स्तनों की जाँच करने लगी। पहली संतान के जन्म के बाद उसे एक स्तन में फोड़ा भी तो हो गया था! अब जब उसको दबा कर देखा तो, एक नन्ही सी गाँठ और उसके आसपास सिकुड़ती हुई त्वचा साफ़ दिखलाई पड़ी, न कोई दर्द, न जलन, न ही स्तन के आकार में कोई बदलाव। लेकिन दबाव से गाँठ और त्वचा पर सिकुड़न तो स्पष्ट थी, जो दूसरे स्तन पर एकदम नहीं थी। उसके प्राण कंठ में आकर अटक गए, फोड़े की बात भी पंद्रह वर्ष से अधिक पुरानी हो गई है। पोस्टर की हिदायतों के अनुसार उसे अस्पताल में जाकर अपनी जाँच करा लेनी चाहिए, हो सकता है यह कैंसर हो। 

यदि यह कैंसर हुआ तो! यदि एक छाती काट कर निकाल दी गई तो! बस यही विष पिछले दो महीनों से प्रतिपल वह पी रही थी। ऐसे में आँखों में नींद भला कैसे आती? 

स्त्रीत्व का सबसे सुंदर प्रतीक-सुडौल, सचिक्कण उरोज, घने श्यामल घटाओं जैसे बाल! इस रोग की चिकित्सा में ये दोनों ही उससे छिन जायेंगे। कैसे जी पाएगी वह इस अपंगता के साथ? उसके वैवाहिक जीवन का क्या होगा? पति की दृष्टि में उसका क्या मूल्य रह जाएगा? सखी-सहेलियों की करुणा भरी आँखें! ब्लाउज के नये नाप! 

दिन रात वह इसी घुटन में जी रही थी। बात-बे-बात उसकी आँखें छलक आतीं, वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कि कैसे परिवार के सामने इस बात को बताए। जब वह स्वयं को ही नहीं समझा पा रही थी, तो और कोई क्या समझेगा उसकी पीड़ा? अस्पताल जाकर जाँच कराने की कल्पना करते ही उसकी वेदना अति तीव्र हो जाती। 

जब घबराहट हद से अधिक बढ़ गई तो वह बिस्तर में ही उठकर बैठ गई। शान्ति, शक्ति और साहस पाने के लिए कई मंत्रों के जाप कर डाले। अंत में वह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगी—ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे ऽ ऽ ऽ। मन में शिव के कल्याणकारी रूप का चिंतन करने लगी—शीश पर गंगा, माथे पर चंद्र मुकुट, गोदी में बाल गणेश, गले पर नाग, कंठ में विष, द्वार पर नंदी, बग़ल में माता पार्वती, कितना सुंदर तेजोमय स्वरूप-- ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे ऽ ऽ ऽ। 

मंत्र जपते हुए भी मन की भटकन थमी न थी, सोचने लगी—मेरा पति भी तो मुझे कितना प्यार करता है, मानो हम शिव-पार्वती हों! क्या मेरे इलाज के बाद भी मेरे पति मुझे उतना ही प्यार कर पाएँगे? और तब सहसा उसने विचार किया कि शिव का प्यार तो पार्वती के प्रति इतना गहरा था कि उन्होंने अपने आधे अंग में गौरी को बसा लिया और स्वयं 'अर्धनारीश्वर’ बन गए। मन में कई बार अर्धनारीश्वर शब्द कौंधा! इस बात पर ध्यान जाते ही उसका हृदय अकस्मात् ही एक अपूर्व शान्ति से भर गया। उसे मन में एक दृढ़ता का अनुभव होने लगा। कहीं ऐसा तो नहीं है कि शिव उसकी परीक्षा ले रहे हैं? सोचने लगी, 'यह रोग देकर ईश्वर ने मेरी सहनशीलता और आस्था की परीक्षा लेनी चाही हो?’ एक स्तन कट जाने पर मैं भी तो प्रभु के अर्धनारीश्वर रूप के कुछ निकट पहुँच जाऊँगी! यह मेरे आराध्य प्रभु का आशीर्वाद ही ना हो!’ 

अब उसे भय कैसा? उसे लगा मानो शिवजी ने उसकी परीक्षा लेने के लिए ही उसे इस स्थिति में डाला है। अपने रूप का तनिक सा ज्ञान कराने के लिए उसको यह अवसर दिया है। हे प्रभु शिव! मेरी सहायता करना!! 

उसने अगली सुबह अस्पताल जाकर जाँच कराने का निश्चय कर लिया, शिव का ध्यान करते हुए वह शान्ति से सो गई। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2022/05/24 12:42 PM

बहुत बढ़िया!शानदार

डॉ पदमावती 2022/05/24 12:01 PM

मानसिक उहापोह का सजीव चित्रण । हाँ! जीवन में विश्वास ही सब कुछ है । दांपत्य जीवन का आधार शारीरिक सुंदरता कभी नहीं हो सकता ! आरंभ भले इसी से हो लेकिन धीरे-धीरे यह गौण और आत्मीयता प्रधान बन जाती है । यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जो परस्पर प्रेम और विश्वास की महीन डोर को थामे चलता है ।हाँ,जहां तक भारत का संबंध है । हाल ही में एक कहानी पढ़ने का अवसर मिला था विष्णु प्रभाकर की लिखी ‘जज का फ़ैसला’ । बहुत ही रोमांचक कहानी थी जहां नायक ट्रेन एक्सीडेंट में कुरूप हुई प्राणों से भी प्रिय पत्नी की गला दबा कर हत्या कर देता है । पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए । अपवाद भी है लेकिन विश्वास अपनी जगह क़ायम है । बहुत बधाई ।

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा

कविता

यात्रा-संस्मरण

ललित निबन्ध

काम की बात

वृत्तांत

स्मृति लेख

सांस्कृतिक आलेख

लोक कथा

आप-बीती

लघुकथा

कविता-ताँका

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं