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भोर का चाँद

 

भोर के धुँधलाए-खुलते आकाश में, 
मद्धिम-कुम्हलाता-सा गतयौवन चाँद! 
 
दो-चार बची हुई, रात की रोशनियों को
चुपचाप मानो गिनता हुआ-सा चाँद! 
 
करके रखवाली रात भर इस धरती की
‘नाइट की ड्यूटी’ से थका हुआ-सा चाँद, 
 
करने को विश्राम माता की गोदी में, 
घर जाने को तत्पर उतावला-सा चाँद
 
उजली गोरी चाँदनी जो रात भर थी साथ, 
उसके चले जाने से अनमना हुआ-सा चाँद! 
 
देने को कार्यभार धरती का सूरज को, 
सूरज की बाट जोहता हुआ सा-चाँद! 
 
देख कर के सूरज को उसकी किरणों के संग
अपने एकाकीपन से रुआँसा हुआ चाँद!! 
 
उषा की बेला में, पश्चिमी नभ-मंडल में
उदास, अकेला, निस्तेज, बोझिल-सा चाँद! 
 
मेरी बालकनी से दिखती सूरज की नई प्रभा
जिसकी प्रखरता से हारता हुआ-सा चाँद! 

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