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कॉफ़ी के फूल

सिल्वर ओक के पेड़

चिकमंगलूर में श्रीराम मंदिर जहाँ सीता जी राम के दक्षिण पार्श्व में हैं

एक आनंदयात्रा और कॉफ़ी के फूल

भारत के कर्नाटक प्रदेश में एक नगर है, चिकमंगलूर। देश की राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों के दिमाग़ में इस शहर का नाम सुनते ही एक बिजली सी कौंधती है। यदि बिजली न भी कौंधे तो घंटी तो अवश्य ही बजती है, ऐसा इसलिए है क्योंकि इसी नगर से भारत की अब तक की पहली और अकेली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी एक बार चुनाव लड़ी थीं। उस चुनाव का भी ऐतिहासिक महत्त्व है। सन् 1975, में रायबरेली से लड़े गए उनके चुनाव को अदालत ने अवैध घोषित कर दिया। इस घोषणा के बाद ही इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल की अधिकतम अवधि पूर्ण होने के बाद उन्होंने जो चुनाव रायबरेली से लड़ा, उसमें वे श्री राज नारायण द्वारा पराजित कर दी गईं। 1977 में पहली बार कांग्रेसेतर सरकार भारत में बनी, पर यह सरकार अधिक समय तक चली नहीं और लोकसभा भंग हो गई। अब इंदिरा जी ने चिकमंगलूर को अपना चुनाव क्षेत्र चुना और यहाँ से वे बहुमत से विजयी हुईं। यह तो हुआ कुछ चिकमंगलूर का राजनैतिक इतिहास। 

यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य, कॉफ़ी के बाग़ानों और प्राचीन मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। नई पीढ़ी के लोग चिकमंगलूर के राजनैतिक इतिहास से अनभिज्ञ भी हो सकते हैं परन्तु छुट्टियाँ बिताने के लिए इस शहर को सदैव याद रखते हैं। 

अब आप पूछेंगे कि भला मैं चिकमंगलूर की जानकारी आपको क्यों दे रही हूंँ? तो सुनिए, हुआ यूँ कि करोना-काल में लगी बंदी में अधिकांश लोग अपने घरों में ही क़ैद रहे। हमें भी बैंगलोर में रहने वाली बिटिया से मिले बहुत दिन हो गए थे, उससे मिलने हम दिल्ली से बैंगलोर चले आए। संयोग से मेरी छोटी बहन भी इसी शहर में अपने सयाने हो चुके बच्चों के साथ रहती है। दिल्ली से बैंगलोर आने के कारण हमारी तो सैर हो रही थी परन्तु वह अभी तक स्वयं को ’गृहवास’ में ही पा रही थी, तो थोड़ा घूमने-फिरने के विचार से चिकमंगलूर की आनंद यात्रा का कार्यक्रम बन गया। हम दो दंपती निकल पड़े इस यात्रा के लिए। 

अप्रैल के प्रथम सप्ताह में जब भारत में वसंत ऋतु अपने चरम यौवन पर रहती है तब बैंगलोर शहर की सुंदरता के क्या कहने! शहर से बाहर राजमार्ग 75 पर आने तक तो मानो दृष्टि का उत्सव ही चलता रहा। गुलाबी, पीले, नारंगी फूलों से लदे वृक्ष पूरे शहर को उपवन समझने पर विवश कर रहे थे। गुलाबी फूलों के पिंक ट्रंपेट, पीले फूलों वाले टोबेबुइया, नारंगी रंग के कालवेलिया, बैंजनी जकरंडा आदि के वृक्ष मानों एक दूसरे से होड़ लगाकर फूल रहे थे। ऐसे भी अनगिनत फूलों के पेड़ है बैंगलोर में जिनके मैं नाम भी नहीं जानती। वृक्षों के तने इतने मोटे हैं कि उनको देखकर लगता है मानो सदियों का इतिहास स्वयं में समेटे हुए हैं। सचमुच बैंगलोर को ’गार्डन सिटी’ व्यर्थ ही नहीं कहा जाता! 

राजमार्ग की यात्रा के समय फूल तो नहीं दिखाई पड़े परन्तु नारियल और सुपारी के सुंदर बग़ीचे कम नयनाभिराम नहीं है। चिकने, साफ़, लंबे, तनों के शीर्ष पर पत्रकों का मुकुट पहने ये वृक्ष प्रकृति की सुंदर कृतियाँ हैं। सड़क के दोनों और ऐसे ही बाग़ान दूर-दूर तक दिखलाई पड़ते हैं। 

 उत्तर भारत की घनी आबादी वाले क्षेत्रों की तुलना में राजमार्ग के दोनों ओर गाँव और खेतों के बदले इन हरे भरे बग़ीचों और कहीं-कहीं शिलाओं से भरी पठारी भूमि को देखना अपने में एक नया ही अनुभव था। यदि कहीं मकान दिखलाई भी पड़ते हैं तो, नीले, पीले, धानी आदि चटक रंगों से रंगे और सुंदर खपरैल से छाए हुए। उत्तर भारत के खपरैल और, प्लास्टिक से बनी छाजनों वाले सफ़ेद मकानों से सर्वथा भिन्न, विरल और संपन्न। 

बैंगलोर से चिकमंगलूर की यात्रा कार द्वारा लगभग 5 घंटों की रही। अपराह्न में हम चिकमंगलूर पहुँच गए। कॉफ़ी के एक बाग़ीचे में हमने एक अतिथिगृह आवास के लिए आरक्षित किया था। चाय के बाग़ानों की भाँति कॉफ़ी के बग़ीचे भी पहाड़ी ढलानों पर ही लगाए जाते हैं क्योंकि इन्हें पानी तो बहुत चाहिए परन्तु रुका हुआ पानी ये पसंद नहीं करते। कॉफ़ी की अच्छी पैदावार के लिए पौधों को धूप से बचाने की भी आवश्यकता होती है। अधिकांश बागानों में कॉफ़ी और काली मिर्च की खेती एक साथ की जाती है। कॉफ़ी का पौधा चौड़ी पत्तियों वाला, झाड़ीनुमा होता है और काली मिर्च की लता होती है। कॉफ़ी की झाड़ियों को धूप से बचाने के लिए जो पेड़ लगाए जाते हैं, उन्हीं के तनों पर लिपटाकर काली मिर्च की बेल चढ़ाई जाती है। यहाँ कॉफ़ी के खेतों में छाया के लिए सिल्वर ओक के वृक्ष लगाए जाते हैं। यह तेज़ी से बढ़ने वाला वृक्ष हैऔर तनों को साफ़ रखना भी आसान होता है, जिस पर काली मिर्च की बेल चढ़ाई जा सके। और सबसे बड़ी बात, आवश्यकता होने पर इनको सरकारी आज्ञा लिए बिना काटा जा सकता है। पृथ्वी और वन के संरक्षण के लिए निजी वृक्षों तक को काटने से पहले सरकारी अनुमति लेना अनिवार्य है। सिल्वर ओक और यूक्लिप्टस, ये दो प्रजातियाँ भूमिगत जल का शोषण अपेक्षाकृत तीव्र गति से करती हैं, अतः इनको काटने पर प्रतिबंध नहीं है। 

मैं भी कैसी बावली हूंँ! आनंदयात्रा की बात करते-करते कहाँ आपको तकनीकी बातों में उलझा रही हूंँ, पर करूँ भी क्या? आपको कॉफ़ी के फूलों के बारे में भी तो बताना है! तो ये बातें अप्रासंगिक तो नहीं कही जा सकतीं। 

तो आगे सुनिए, हमारा अतिथिगृह कॉफ़ी के बग़ीचे के बीच में था। अतः राजमार्ग छोड़कर, शहर की सड़कों, बाज़ारों से होते हुए हम शहर की परिधि से बाहर निकल आए। भला हो गूगल मैप्स का, रास्ता पूछने का झंझट ही नहीं रहता। परन्तु भीड़ के अतिरिक्त, यह सुविधा, सड़क की स्थिति का ज्ञान तो कराती नहीं!! कच्चे, पथरीले, सँकरे रास्तों से होते हुए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। जब बाग़ान शुरू हुए तो रास्ते के दोनों ओर की झाड़ियों में सफ़ेद फूल-से दिखाई पड़ने लगे। मेरे मन में उत्सुकता जागी कि इतना प्राकृतिक सौंदर्य प्रेमी कौन है जो इन पगडण्डी जैसी सड़कों के दोनों ओर ये सफ़ेद फूल लगाए हुए हैं? जैसे-जैसे हम बाग़ान के अंदर की तरफ़ जाते रहे इन फूलों का परिमाण भी बढ़ता रहा। अतिथिगृह तक पहुँचते-पहुँचते इस रहस्य पर से पर्दा हट गया, अरे वाह! ये तो कॉफ़ी के फूल हैं!!! ’प्लांटेशन डिलाइट’ अतिथि गृह के पहली मंज़िल के अपने कमरे में पहुँचते-पहुँचते मेरा मन इन सफ़ेद फूलों से गुथी कॉफ़ी की टहनियों को देखकर अभिभूत हो चुका था। गर्म, कड़वी, काली, कॉफ़ी का प्याला पीते हुए इन सफ़ेद फूलझड़ी सी कॉफ़ी की टहनियों की कल्पना कर पाना भी मेरे लिए कल्पनातीत था।

चिकने तनों वाले लंबे सिल्वर ओक के पतले तनों के बीच में तीन-चार फुट ऊँची, चिकनी, हरी पत्तियों से भरी टहनियों पर दो पत्तियों के संधि स्थल पर सफ़ेद फूलों के गुच्छे लगे हुए थे। ऐसी ही झाड़ियों से दृष्टिपथ में आने वाली सारी धरती ढकी थी। कहीं-कहीं अपराह्न के हल्के पड़ते भानु की स्वर्णिम किरणों के टुकड़ो में पड़ने वाले ये अद्भुत सुन्दर फूल, कुछ और अधिक मोहक जान पड़ते थे। और हवा में घुली थी मादक, श्रमहारी, भीनी-भीनी सुगंध। इस सुंदर मनोरम दृश्य का आनंद वर्णनातीत है। नासा, चक्षु और हृदय तीनों जब वहाँ अपने स्थूल रूप में उपस्थित हों, तभी इस दृश्य का वास्तविक आनंद मिल सकता है। 

सामान वग़ैरा कमरे में रख, एक प्याला चाय पी, हम चारों बग़ीचे में सूर्यास्त होने तक पैदल घूमते रहे। सफ़ेद फूलों और हरी पत्तियों से बनी पुष्प मालाएँ मानों हर झाड़ी को अलंकृत किए हुए थीं। स्वर्ग के नंदनकानन में घूमना क्या इससे अधिक आनंददायक होगा? 

जब सूर्य का प्रकाश एकदम लुप्त हो गया तभी हमारा कमरों में जाना हुआ। सुबह सवेरे फिर मेरी और मेरी बहन की सैर आरंभ हो गई। इस अनुपम छवि को हम अपनी स्मृति में जीवन भर के लिए क़ैद कर लेना चाहते थे। 

भारत की उत्तरी सीमाओं से प्रवेश करने वाले आक्रमणकारी दक्षिण भारत पर अपना प्रकोप कम दिखा पाए, इसलिए दक्षिण में हमारी प्राचीन धरोहर अपेक्षाकृत अधिक अच्छी स्थिति में है। यहाँ चिकमंगलूर में श्रीराम का ऐसा मंदिर है जिसमें सीता जी राम के दक्षिण पार्श्व में है। पत्नी का स्थान तो सदैव पति के वाम अंग में ही होता है, फिर यह विरोधाभास!! 

इस मंदिर से जुड़ी कथा इस प्रकार है—राम ने शिव धनुष भंग कर जनक की प्रतिज्ञा पूरी कर दी और सीता से उनका विवाह हो गया। इस अवसर पर परशुराम के क्रोध की कथा भी सर्वविदित है। विवाह करके जब श्रीराम सीता को लेकर अयोध्या की ओर चले तो मिथिला से बाहर निकलते ही परशुराम ने उनका मार्ग रोक लिया। शिवधनु-भंजन के कारण उत्पन्न हुआ उनका रोष अभी शांत नहीं हुआ था। परशुराम द्वारा ललकारे जाने पर राम ने उनसे युद्ध किया और उन्हें पराजित भी कर दिया। राम के वास्तविक रूप (विष्णु अवतार) का ज्ञान अब परशुराम को हुआ। उन्होंने राम से निवेदन किया कि अपने क्रोध के कारण वे श्रीराम का विवाह देखने से वंचित रह गए हैं अतः राम उन्हें अपना और जानकी का विवाह से पहले का रूप दिखादें। राम ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए सीता को अपने दाएँ तरफ़ रखते हुए त्रिभंगी मुद्रा में अपने पाणिग्रहण से पहले की छवि के दर्शन करा दिए। काले पत्थर की सीता राम और लक्ष्मण की ये मूर्तियाँ अत्यंत सुंदर है। तीनों विग्रह त्रिभंगी मुद्रा में है। मंदिर बारह सौ वर्ष पुराना है। श्रीराम की पीठ पर तरकश नहीं है, परन्तु परशुराम के साथ हुए तात्कालिक द्वंद्व के कारण उनके हाथ में बाण अवश्य है। कथा है कि जिस क्षेत्र में यह स्थित है वह परशुराम के निवास का स्थान था और इस का प्राचीन नाम भार्गवपुरी था। मंदिर का नाम ’कोदंड राम’ अथवा ’कल्याण राम’ मंदिर है, हाथ में धनुष के कारण ’कोदंड राम’ और विवाह के समय का रूप होने के कारण ’कल्याण राम’ नाम है मंदिर का। इस समय इस मंदिर का जीर्णोद्धार प्रगति पर है। चालुक्य वंश के राजाओं द्वारा बनवाए गए इस मंदिर में स्थापना के समय से अब तक निरंतर पूजा-अर्चना होती आ रही है, इस दृष्टि से यह भारतवर्ष का सर्वाधिक प्राचीन जागृत देवालय है। 

चिकमंगलूर में ही बेलावाड़ी नामक स्थान पर वीरनारायण स्वामी (विष्णु) का मंदिर हमने देखा! इसका स्थापत्य बेलूर (संप्रति-विश्व धरोहर) के मंदिर जैसा है! यह मंदिर बेलूर के विश्व प्रसिद्ध देवालय से भी 200 वर्ष पहले का है। ऐसा माना जाता है कि इसी के नमूने से प्रभावित होकर चालुक्य वंश के राजाओं ने बेलूर के मंदिर का निर्माण करवाया था। श्री कृष्ण के जीवन के लोकप्रिय प्रसंग मंदिर की बाहरी दीवारों पर बड़ी ख़ूबसूरती से उकेरे गए हैं। जिन पत्थरों से दक्षिण भारत के मंदिरों का निर्माण किया गया है वे उत्तर भारत के बलुआ पत्थरों से एकदम भिन्न है। यह इतने कठोर हैं कि छूने से धातु के सघन रूप का ज्ञान होता है। इनके सुदीर्घ जीवन का एक यह भी कारण है। सप्ताह के दिनों में केवल स्थानीय लोग ही यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। छुट्टियों में कुछ पर्यटक भी आते हैं। इस मंदिर की प्राचीनता और अद्भुत कलाकारी का प्रचार-प्रसार बहुत कम हुआ है, अतः सैलानियों का अभाव ही रहता है। 

आज दिन भर धूप और गर्मी रही। मंदिर का प्रस्तर प्रांगण इतना गर्म हो गया कि पदत्राण के बिना चलने पर पैरों में छालों की नौबत आ गई, लेकिन तीसरे पहर से फुहारें पड़ने लगीं। आवास पहुँचने तक काफ़ी पानी बरस चुका था। अतिथिगृह पहुँचकर देखा कॉफ़ी के सुंदर, सुकुमार, सफ़ेद फूलों की मालाएँ कुम्हला गई थीं, रंग भी धूसर हो आया था। यह फुहार वाला मौसम रात भर चलता ही रहा और सुबह तक कल की कुसमावलि बनी वाटिका एक साधारण कॉफ़ी का बाग़ीचा बन चुकी थी। फूल से हरे फल, हरे से लाल होकर का काले होते फल, परिपक्व हो कर कॉफ़ी बीन बनते फल, अंततः भुन-पिस कर आपको-हमको ताज़गी भरा पेय का प्याला बनाने वाले बीजों को देनेवाली झाड़ियों का बग़ीचा!!! 

कॉफ़ी के फूलों के लघु जीवन को जान मन थोड़ा उदास हो गया। अतिथिगृह के स्वामी ने बताया कि हम बहुत भाग्यशाली थे कि कॉफ़ी के फूलों के भरपूर यौवन का आनंद ले सके। ये फूल इतने अल्पजीवी होते हैं कि पर्यटकों को इनका दर्शन लगभग अप्राप्य ही होता है। 

इन फूलों को देख लेने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि अब जब भी कॉफ़ी का प्याला मेरे हाथों में होगा, मेरी आँखों में कॉफ़ी के पुष्पित बाग़ीचे का दृश्य होगा। 

एक आनंदयात्रा और कॉफ़ी के फूल

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नोट- सुधि पाठक इस यात्रा संस्मरण को पढ़ते…

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