केकड़ा राजकुमार
अनूदित साहित्य | अनूदित लोक कथा सरोजिनी पाण्डेय1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
मूल कहानी: इल् प्रिंसिपी ग्राँचिओ; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (दि क्रैब प्रिंस); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
प्रिय पाठक,
एक और कहानी, जलपरी वाली, आपको अपने बचपन में पहुँचने वाली, कथा का आनंद लें:
बहुत पुराने ज़माने की बात है, एक मछुआरा था। उसका भाग्य इतना खोटा था कि उसके जाल में कभी इतनी मछलियाँ नहीं फँसती थीं कि वह अपने परिवार का पेट भर सके। एक दिन की बात है कि जब उसने अपना जाल पानी में से बाहर खींचना चाहा तो उसमें इतना वज़न था कि वह उसे खींच नहीं पा रहा था। जब किसी तरह उसने जाल बाहर निकाला तो देखा कि उसमें एक इतना बड़ा केकड़ा फँसा हुआ था जैसा दुनिया में कभी किसी ने देखा ही नहीं होगा। मछुआरा ख़ुश हो गया और चिल्ला पड़ा, “वाह आज की कमाई! आज तो मैं अपने बच्चों को पकवान भी खिला पाऊँगा!”
वह केकड़े को लेकर घर पहुँचा और बीवी से बोला, “तुम खाना बनाने की तैयारी करो मैं जल्दी ही राशन का लेकर लौटता हूँ।”
केकड़ा ले कर वह सीधा राज दरबार पहुँच गया। हाथ जोड़कर राजा से बोला, “महाराज, मैं यह केकड़ा लेकर आपकी सेवा में आया हूँ। मेरी बीवी खाना बनाने की तैयारी कर रही है, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं राशन ख़रीद सकूँ आप इस केकड़े को ख़रीद लीजिए तो मैं राशन ख़रीद कर घर ले जा सकूँगा।”
इस पर राजा ने उत्तर दिया, “इस केकड़े का मैं क्या करूँगा? तुम इसे किसी और को बेच दो।”
लेकिन तभी वहाँ राजा की बेटी आ गई। जब उसने केकड़ा देखा तो बोल उठी, “थी कितना सुंदर केकड़ा है! पिताजी, यह मेरे लिए ख़रीद दीजिए मैं इसे अपनी मछलियों वाली बावड़ी में रखूँगी, जहाँ दूसरी और मछलियाँ रहती हैं!”
राजा की बेटी को मछलियों से बहुत प्यार था। वह राजमहल के बग़ीचे में बनी बावड़ी के किनारे घंटों बैठी रहती और उसमें पले जल-जीवों को देखती रहती थी। राजा को बेटी बहुत प्यारी थी इसलिए उन्होंने केकड़ा ख़रीद लिया। मछुआरे ने केकड़े को ले जाकर बावड़ी में डाल दिया और थैली भर सिक्के इनाम में पाकर राजा की जय-जयकार करता हुआ चला गया।
राजकुमारी तालाब के किनारे बैठी मछलियों और केकड़ों को देखती हुई सारा-सारा दिन बिता दिया करती थी। उसे मछलियों के स्वभाव का ज्ञान हो गया था। केकड़े की एक विचित्र बात पर राजकुमारी का ध्यान अक़्सर जाता था कि वह दोपहर में बारह बजे तक तो बावड़ी में रहता और उसके बाद न जाने कहाँ ग़ायब हो जाता था।
एक दिन जब राजकुमारी ताल के किनारे बैठी केकड़े को ध्यान से देख रही थी तभी उसे एक भिखारी की आवाज़ सुनाई दी, दौड़कर वह फाटक तक गई और भिखारी की ओर सिक्कों की एक थैली उछाल दी। लेकिन वह थैली बग़ीचे के किनारे की खाई में जा गिरी। भिखारी थैली के लिए खाई में कूद गया और उसमें भरे पानी में डूबने लगा। यह खाई राजा के बग़ीचे में बनी बावड़ी से ज़मीन के अंदर बनी नहर के साथ जुड़ी थी और पता नहीं कितने अंदर तक जाती थी। भिखारी नहर में तैरता चला गया। वह तैरते-तैरते एक ऐसी जगह जा पहुँचा जहाँ पाताल लोक में एक बहुत सुंदर भवन बना हुआ था, महल की सजावट बहुत सुंदर थी, चमकदार पर्दे लटके हुए थे, मेज़ पर खाने पीने की वस्तुएँ रखी थीं और इसी भवन के बीचों-बीच एक छोटी-सी सुन्दर बावड़ी में यह नहर खुलती थी। भिखारी बाहर निकाल कर फटी-फटी आँखों से एक पर्दे में अपने को छुपा कर यह सारा नज़ारा देखता रहा।
दोपहर के ठीक बारह बजे घड़ियाल के घंटे के साथ बावड़ी में एक जलपरी प्रकट हुई जो एक केकड़े के ऊपर बैठी थी। ऊपर आते ही केकड़ा और जलपरी उछलकर बावड़ी से बाहर आ खड़े हुए। जलपरी ने केकड़े की पीठ पर अपनी जादुई छड़ी घुमाई और देखते ही देखते केकड़े के स्थान पर एक सुंदर सजीला युवक खड़ा हो गया। दोनों कुर्सियों पर जा बैठे . . . परी ने मेज़ पर अपनी छड़ी बजाई और स्वादिष्ट खाना थाली में सज गया। जब युवक खाना खा चुका तब वह फिर केकड़े के खोल में घुस गया। जलपरी ने खोल पर अपनी जादुई छड़ी घुमाई और केकड़े की पीठ पर बैठ गई। केकड़ा पानी में कूद कर, जलपरी के साथ पानी में ग़ायब हो गया।
अब भिखारी पर्दे के पीछे से बाहर निकला, पानी में घुसा और वापस राजा के बग़ीचे की बावड़ी में आ गया। राजकुमारी बावड़ी के किनारे बैठी अपनी मछलियों को निहार रही थी। जब उसने ताल में से एक सिर बाहर निकलते देखा तो बोली, “तुम कौन हो,? यहाँ क्या कर रहे हो?”
“राजकुमारी,” भिखारी बोला, “मेरे पास एक बहुत अचंम्भे की बात आपको बताने के लिए है!” वह तालाब से बाहर निकल आया और राजकुमारी को सारी कहानी सुनाई दी। अब राजकुमारी को समझ में आ गया कि दोपहर में केकड़ा कहाँ चला जाता था। उसने भिखारी से कहा, “कल तुम यहाँ दोपहर में आ जाना और हम दोनों साथ चलकर यह अचंभा देखेंगे!”
अगली दोपहर को राजकुमारी और भिखारी दोनों सुरंग की नहर में साथ-साथ तैर कर पाताल लोक के भवन में जा पहुँचे और पर्दों के पीछे छुप गए। ठीक दोपहर के समय जलपरी केकड़े की पीठ पर सवार, प्रकट हुई। उसने अपनी छड़ी घुमाई केकड़े को युवक बनाया और दोनों कुर्सियों पर बैठ गए। जब राजकुमारी ने इस सुंदर युवक को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। केकड़े के रूप में भी तो वह उसे बहुत अच्छा लगता था, अब तो वह सजीला युवक ही था। केकड़े का ख़ाली खोल राजकुमारी के पास ही पड़ा था। वह उसमें घुसकर बैठ गई। जब युवक अपनी खोल में दोबारा घुसा तो वहाँ उसने राजकुमारी को देखा। वह फुसफुसाया, “यह तुमने क्या किया? अगर जलपरी को इसका पता लग गया तो वह हम दोनों को ही मार देगी।”
राजकुमारी ने कहा “मैं तुम्हें इस मायाबंध से छुड़ाना चाहती हूँ और इसके लिए मैं कुछ भी करूँगी।”
“यह नामुमकिन है,” नौजवान बोला, “ऐसा केवल वही युवती कर सकती है जो मेरे प्रेम में मरने तक को तैयार हो।”
राजकुमारी ने कहा, “तो समझ लो कि मैं वही युवती हूँ,”
अभी युवक और राजकुमारी यह बातें कर ही रहे थे कि जलपरी केकड़े की पीठ पर आ बैठी और केकड़ा तैरता हुआ सुरंग की नहरों से होता हुआ राजा के बग़ीचे की बावड़ी में पहुँच गया और जलपरी अपने स्थान पर चली गई। परी को इस बात की भनक भी नहीं लगी थी कि खोल में युवक के साथ राजकुमारी भी है।
बग़ीचे की बावड़ी में पहुँचने के बाद युवक ने राजकुमारी को बताया कि वह एक राजकुमार है जो जलपरी के तंत्र-मंत्र में फँस गया है। युवक ने कहा, “मुझे इस माया-बंध से आज़ादी दिलाने के लिए तुमको समुद्र के किनारे की एक चट्टान पर चढ़कर, जलपरी को रिझाने के लिए गाना और बजाना होगा। वह संगीत प्रेमी है। यदि उसे तुम्हारा संगीत पसंद आ गया तो वह समुद्र से बाहर आएगी और तुमसे और अधिक संगीत सुनाने को कहेगी। तब तुम कहना कि तुम संगीत सुनाने के बदले उसके बालों का फूल पुरस्कार में चाहती हो। जब वह फूल तुम्हारे हाथ में आ जाएगा तब मैं इस मायाबंध से मुक्त हो जाऊँगा क्योंकि उसी फूल में मेरी जान है।”
सब कुछ जान-समझ लेने के बाद राजकुमारी केकड़े के खोल से बाहर आ गई।
भिखारी जब तालाब से बाहर आया तब तक राजकुमारी वहाँ नहीं आई थी, उसे लगा कि वह भारी मुसीबत में फँस गया है लेकिन तभी राजकुमारी पानी से बाहर निकली। उसने भिखारी को बहुत सारा उपहार दे कर विदा किया।
अगले दिन राजकुमारी अपने पिता के पास गई और कहा, “पिताजी, मछलियाँ देखते-देखते अब मैं ऊब गई हूँ, मैं संगीत सीखना चाहती हूँ।” पिता ने तुरंत गायकों और वादकों को बुला भेजा राजकुमारी संगीत का अभ्यास करने लगी। जब वह संगीत में निपुण हो गई तो उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी मैं समुद्र के किनारे की एक चट्टान पर बैठकर संगीत का अभ्यास करना चाहती हूँ . . .”
पिता ने हैरान होकर पूछा, “समुद्र के किनारे की चट्टान पर? क्या तुम पागल हो गई हो?”
लेकिन पिता तो पिता ही है उन्होंने राजकुमारी की बात मान ली गई। सागर तट की एक शिला पर उसके बैठने का आसन बना। उसकी सेवा में सफ़ेद कपड़ों में सजी-धजी आठ सेविकाएँ नियुक्त कर दी गईं। कुछ दूरी पर हथियारबंद सैनिक भी राजकुमारी की रक्षा के लिए तैनात कर दिए गए। और राजकुमारी समुद्र के किनारे की शिला पर बैठ गई सफ़ेद कपड़ों में सजी आठों दासियाँ उसको घेरे हुए थीं और राजकुमारी ने वायलिन बजाना और गाना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में समुद्र के पानी से जलपरी निकली और बोली, “ओह! स्वर्गीय! तुम कितना सुंदर गाती हो और बजाती हो! बजाओ और बजाओ तुम्हारा संगीत सुनना सचमुच बहुत सुखद है!”
अब राजा की बेटी बोली, “ज़रूर! मैं तुम्हें संगीत ज़रूर सुनाऊँगी लेकिन बदले में तुम्हारे जूड़े का फूल मुझे चाहिए। मुझे फूल बहुत पसंद हैं और तुम्हारे जूड़े के फूल से संगीत में मेरा ध्यान नहीं लगेगा।”
“ठीक है,” परी ने कहा, “यह फूल मैं अपने जुड़े से निकाल कर जहाँ फेंकूँगी वहाँ से तुम इसे उठा लेना, ठीक है?” और राजकुमारी ने गाना गाना और वायलिन बजाना फिर शुरू कर दिया। जब गाना पूरा हो गया तो वह बोली, “अब फूल मुझे दे दो।”
“यह लो,” कहते हुए जलपरी ने अपने जूड़े का फूल समुद्र में फेंक दिया। राजकुमारी ने आव देखा न ताव और समुद्र में कूद पड़ी। वह लहरों पर तैरते फूल की तरफ़ बढ़ रही थी। उसे समुद्र में कूदते देखा तो दासियाँ ज़ोर से चिल्ला पड़ीं, “राजकुमारी को बचाओ, राजकुमारी को बचाओ!” लेकिन राजकुमारी निडर होकर तैरती जा रही थी। सहसा एक लहर ने फूल राजकुमारी के हाथ तक पहुँचा दिया। उस समय उसने पानी में से एक आवाज़ आती सुनी, “तुमने मेरी ज़िन्दगी मुझे लौटा दी है! तुम ही मेरी दुलहन हो। अब डरो मत मैं पानी के नीचे हूँ, तुम्हें डूबने नहीं दूँगा; मैं तुम्हें किनारे तक ले चलूँगा लेकिन अभी तुम यह बात किसी को ना बताना। मैं अपने माता-पिता के पास जाऊँगा और अगले दिन उन्हें साथ लेकर आऊँगा और तुम्हारा हाथ माँगूँगा।”
“ठीक है, ठीक है, मैं समझ गई।” और राजकुमारी और केकड़ा तैरते हुए किनारे पर पहुँच गए।
घर पहुँच कर राजकुमारी ने अपने पिता को केवल इतना बताया कि आज उसने संगीत के अभ्यास का बहुत आनंद लिया। अगले दिन शहर में ढोल नगाड़ों की आवाज़ सुनाई देने लगी। एक दूत राजा के पास आया और बोला, “हमारे राजा साहब आपसे मिलना चाहते हैं!”
राजा की सहमति मिलने पर राजकुमार ने राजा के सामने पहुँचकर पूरी कहानी कह सुनायी। कुछ देर के लिए राजकुमारी के पिता भौचक्के रह गए। उन्होंने अपनी बेटी को बुलवाया जो दौड़ी-दौड़ी आई और सारी कहानी उसने भी सुनाई। राजा समझ गए की दोनों की कहानी में सच्चाई है। केकड़े राजकुमार ने जब राजकुमारी का हाथ माँगा तो राजा साहब तुरंत तैयार हो गए। उन्होंने बड़ी धूमधाम से दोनों का विवाह करवा दिया। राजकुमारी और केकड़ा राजकुमार आजीवन एक सुखी दंपती रहे।
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