जलपरी
अनूदित साहित्य | अनूदित लोक कथा सरोजिनी पाण्डेय15 May 2025 (अंक: 277, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मूल कहानी: ला स्पोसा सिरेना; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो; अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द सायरन वाइफ़;
पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; हिन्दी में अनुवाद: ‘जलपरी’
एक जहाज़ी था, जिसकी पत्नी अनुपम सुंदरी थी। अब वह जहाज़ी था, तो कई बार उसे अपने जहाज़ को लेकर दूर-दूर के देशों में जाना पड़ता, कई बार तो घर से बाहर कई महीने भी लग जाते थे।
एक बार वह ऐसी ही लंबी यात्रा पर घर से बाहर दूर कहीं अपना जहाज़ लेकर गया था, तब उस राज्य का राजा इस जहाज़ी की परम सुन्दरी पत्नी पर मोहित हो गया और उसे जबरन अपने महल में ले गया। जब जहाज़ी घर वापस आया तो घर सूना पड़ा था। बेचारा मन मसोस कर रह गया।
समय बीतता रहा। कुछ ही समय बाद ऐय्याश राजा का मन जहाज़ी की पत्नी से भर गया और उसे महल से निकाल दिया गया। बेचारी स्त्री लज्जा और पश्चाताप से भरी अपने पति के पास गई और उससे दया-क्षमा की भीख माँगने लगी। कोमल मन वाला जहाज़ी अभी भी अपनी बीवी से प्यार तो करता था लेकिन पत्नी की बेवफ़ाई से स्वयं को अपमानित, उपेक्षित, ठगा हुआ अनुभव कर रहा था। उसने पत्नी की ओर से अपना मुँह पूरी तरह फेर लिया था। उसने। कहा, “मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा! तुम्हें अपने किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी, तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ।”
बेचारी पत्नी रोती-गिड़गिड़ाती रही, ज़ार-ज़ार रोती रही, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं। जहाज़ी ने अपनी बीवी को अपने जहाज़ पर ऐसे लादा जैसे वह कोई असबाब हो, लंगर खोला और जहाज़ को खे कर ले चला। बीच समुद्र में जाकर बोला, “अब तुम्हारा समय पूरा हो गया, “यह कह कर उसने बीवी को बालों से पकड़ कर घसीटा और समुद्र की लहरों पर उछाल दिया, “मेरा बदला पूरा हुआ” कहते हुए उसने जहाज़ को वापस मोड़ा और घर की ओर चल दिया।
बीवी समुद्र में डूबी और डूबते-डूबते उस तह तक जा गिरी, जहाँ जलपरियांँ रहती हैं। जलपरियांँ, जो अप्रतिम सुंदरियाँ होती हैं, मीठे सुर में गाती हैं और नाविकों को इतना रिझाती हैं कि वे उनके सम्मोहन में फँस, अपना जहाज़ छोड़कर सागर की लहरों में कूद पड़ते हैं।
जलपरियों ने जब इस स्त्री को देखा तो वे बोल उठीं, “अरे, अरे उस सुंदर औरत को तो देखो जिसे समुद्र में फेंका गया है, यह जल-जीवों का भोग बनने लायक़ नहीं है, यह ईश्वर की सुंदर रचना है। हम इसे बचाएँगे, इसे अपने साथ ले जाएँगे।” यह कहकर उन्होंने बीवी का हाथ पकड़ा और उसे अपने जगमगाते जलमहल में ले गईं। उन्होंने उसका शरीर पोंछा, बाल सँवारे, नए कपड़े दिए, सुगंधि लगायी, गहने पहनाए। बीवी हैरान थी, बिल्कुल हक्का-बक्का!
तभी एक जलपरी ने उसे ‘फेनी’ कह कर बुलाया, “फेनी, हमारे साथ आओ,” औरत समझ गई कि यह उसका नया नाम है। अब उसे एक ऐसी जगह ले जाया गया जहाँ एक बड़े से हॉल में सुंदरी जलपरियांँ सजीले जवानों के साथ नाच-गा रही थीं, आनंद मना रही थीं।
जहाज़ी की बीवी ‘फेनी’ के दिन सुख से कटने लगे। लेकिन इस सबके होते हुए भी वह अक्सर अपने पति की याद करती और बेचैन होती रहती। उसे उदास देखकर जलपरियां उससे पूछतीं, “फ़ेनी क्या तुम यहाँ ख़ुश नहीं हो? क्यों इतनी उदास और बुझी-बुझी हो जाती हो?”
“नहीं तो, मैं उदास कहाँ हूँ? सब कुछ तो इतना अच्छा है।” कहने को वह कह तो देती लेकिन उसके चेहरे पर कभी मुस्कुराहट न आती। फ़ेनी का मन बदलने के लिए जल परियों ने उसे अपनी गायिकाओं के दल में शामिल कर लिया और उसे गीत सिखाने लगीं, ऐसे गीत जिन्हें सुनकर नाविक मतवाले हो जल परियों को पाने के लिए समुद्र में छलाँग लगा देते हैं। अब फेनी चाँदनी रातों में इस दल के साथ पानी की सतह पर ऊपर आने और गाने लगी।
एक दिन जब एक जहाज़ को आते देखा तो जल परियों ने फेनी बुलाया, “चलो फेनी ऊपर चलें, आज हम गाएँगे और वे गाने लगीं:
“पूनम की रात का गीत चलो गाएँ,
गोरे-गोल चंदा को गा-गाकर बुलाएँ,
ओ नाविक! आओ, जल में डुबकी लगाओ
एक जलपरी को जो तुम पाना चाहो!”
जल परियों का गीत सुनकर एक नाविक मुग्ध हो, खींचा हुआ जहाज़ की रेलिंग तक आया और फिर—छपाक—वह समुद्र की लहरों में कूद पड़ा। चंद्रमा की रोशनी में फेनी ने उसे पहचान लिया, यह उसका पति था। एक जलपरी कह रही थी, “हम इसे घोंघा बना देंगे।” दूसरी ने कहा, “मैं तो इससे सीप बनाना चाहती हूँ।”
“नहीं, नहीं मैं तो इसे शंख बनाऊँगी,” एक और जलपरी बोली।
“रुको, रुको, “फेनी घबरा कर बोली, “इसे मत मारो। इस पर अपना जादू मत चलाओ!”
“लेकिन तुम इस पर इतनी दया क्यों दिखा रही हो?” फेनी की सखियों ने पूछा।
फेनी बोली, “मुझे नहीं मालूम कि मुझे क्या हुआ है? मैं इस पर अपने ढंग से अपना जादू चलाना चाहती हूँ। बस इसे एक और दिन ज़िन्दा रहने दो।”
हमेशा उदास रहने वाली फेनी का दिल जलपरियाँ तोड़ना नहीं चाहती थीं। उन्होंने उसकी बात मान ली। पानी में कूदे जहाज़ी को जल परियों के शुभ्र महल में क़ैद कर लिया गया। अब तक सुबह हो गई थी।
जब परियाँ सोने चली गई तब फेनी शुभ्र महल के पास जाकर गाने लगी:
“मैं गाती हूँ गीत उजली चाँद रात का
मालूम है मुझे, तू कठोर दिल का था
तुझको बचाऊँगी मैं अब, जलपरी बनी
याद रखना तू मेरी जान पर है बनी”
क़ैद में पड़े जहाज़ी ने जब यह गीत सुना तो उसके कान खड़े हो गए, आवाज़ सुनकर वह समझ गया कि यह उसकी बीवी ही है। उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा, पत्नी के प्रति उसके मन से सारा ग़ुस्सा निकल गया और आशा की एक किरण जगी, शायद यह मुझे बचा ले!
अब जलपरियों का स्वभाव है, वे दिन में सोती हैं और रात में समुद्र की ऊपरी सतह पर जा नाविको-जहाज़ियों को फँसाने के लिए जाल बिछाती हैं। फेनी दिन भर शांत रही। रात को जब सब जलपरियाँ ऊपर चली गईं, तब उसने धीरे से शुभ्र महल का दरवाज़ा खोला और अपने पति से मिली। उसने जहाज़ी को धीरे से समझाया, “चुप रहना जलपरियाँ अभी-अभी गई हैं। हमारी आवाज़ सुन सकती हैं, तुम मुझे कसकर पकड़ लो मैं तुम्हें ले चलूँगी।”
फिर उसने अपनी कमर से लटके जहाज़ी पति के साथ तैरना शुरू किया। वह घंटों तैरती रही, तैरती रही, तब जाकर उन्हें एक जहाज़ दिखाई दिया।
“जहाज़ियों को मदद के लिए पुकारो!” बेनी ने पति से कहा।
“बचाओ, बचाओ, नीचे देखो!”जहाज़ी चिल्लाया!
जहाज़ से एक छोटी नाव उतरी गई। खे कर डूबते जहाज़ी के पास लायी गई और फिर उसका का पैर ऊपर खींच लिया गया।
“जलपरी कहाँ है? जलपरी!” जहाज़ी बड़बड़ाया, “जलपरी! जलपरी, ओ मेरी बीवी!”
“लगता है पानी में गिरने से इसका दिमाग़ फिर गया है!” बचाने वाले लोगों ने कहा, “यहाँ तो कोई जलपरी नहीं है! भैया, शांत रहो, चुप रहो!”
जहाज़ से जहाज़ी अपने शहर चला गया, लेकिन अब उसके दिलो-दिमाग़ पर बस उसकी पत्नी ही छायी रहती। यह सोच-सोच कर वह घुलता रहता कि उसने कितना बड़ा पाप किया है, “मैंने उसे डुबो दिया था और उसी ने मेरी जान बचाई!”
अब उसने सोचा कि वह तब तक चैन नहीं लेगा जब तक अपनी बीवी को खोज न ले, “या तो मैं उसे ढूँढ़ कर लाऊँगा या फिर डूब कर अपनी भी जान दे दूँगा!” जहाज़ी ने तय किया।
यह सब सोच-सोच कर दुखी होते, पागल की तरह घूमते हुए एक दिन वह एक ऐसे जंगल में जा पहुँचा जहाँ एक बड़े अखरोट के पेड़ पर परियाँ आया करती थीं।
“बेटा, तुम इतने उदास क्यों हो? जहाज़ी के कानों में आवाज़ आयी। उसने चौंक कर इधर-उधर देखा तो एक बूढ़ी परी दिखलाई पड़ी।
“मैं उदास इसलिए हूँ कि मेरी प्यारी बीवी जलपरी बन गई है। मैं नहीं जानता कि उसे वापस कैसे पाऊँगा कैसे उसे ढूँढ़ लूँगा।”
वृद्धा बोली, “तुम मुझे भले आदमी लग रहे हो। मैं तुम्हारी मदद ज़रूर कर सकती हूँ लेकिन उसकी शर्त है। क्या तुम वह शर्त मंज़ूर करोगे?”
“मैं आपकी हर शर्त मानने को तैयार हूँ।”
“जल परियों के महल में एक ऐसा फूल खिलता है जो और कहीं नहीं होता। वह संसार का सबसे ख़ूबसूरत फूल माना जाता है। अगर तुम वह फूल लाकर यहाँ इस अखरोट के पेड़ के नीचे रख दो तो तुम्हारी बीवी वापस मिल सकती है। क्या तुम ऐसा कर लोगे?”
“समुद्र की तलहटी से वह फूल मैं भला कैसे ला पाऊँगा?”
“अगर अपनी बीवी वापस चाहते हो तो उसका तरीक़ा तो तुम्हें ख़ुद ही निकालना पड़ेगा।”
“मैं कोशिश करता हूँ!” जहाज़ी ने कहा और चला गया।
अगले दिन वह घाट पर जा पहुँचा अपने जहाज़ का लंगर उठाया और गहरे समुद्र में चला गया, जहाँ उसे कभी अपनी बीवी की आवाज़ सुनाई दी थी। वहीं वह बीवी का नाम ले लेकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा। कुछ ही देर में उसे पानी में छपछपाहट सुनाई दी और उसने अपनी पत्नी को जहाज़ की ओर तैरते देखा।
वह बोला, “प्यारी बीवी, मैं तुम्हें यहाँ से निकाल कर अपने साथ ले जाना चाहता हूँ। लेकिन मैं ऐसा कर पाऊँ इसके लिए तुम्हें दुनिया का वह सबसे सुंदर फूल लेकर आना होगा जो केवल जल परियों के महल में उगता है।”
“ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता!” फिर कुछ देर सोच कर बोली, “वह फूल वहाँ है! बिल्कुल है! उसकी सुगंध भी बहुत मतवाली है। उस फूल को जल परियों ने ‘परी-लोक’ से चुराया था। अगर वह फूल जल महल से चला गया तो सारी जलपरियाँ मर जाएँगी। अब तो मैं भी जलपरी हूँ, तो मैं भी उनके साथ ही मर जाऊँगी।”
तब जहाज़ी ने बताया, “तुम नहीं मरोगी तुम्हें ‘परियाँ‘ बचा लेंगी।
“ठीक है, अब तुम कल आना, तब मैं तुम्हें अपना उत्तर बताऊँगी।”
अगले दिन जहाज़ी फिर समुद्र में वहीं पहुँच गया। थोड़ी देर में फेनी भी आ गयी।
“अब बताओ!” जहाज़ी ने पूछा।
इस पर फेनी बोली, “अगर तुम अपना घर, मकान बेचकर, सारी जमा पूँजी लगाकर शहर के सभी जौहरियों से उनके सारे हीरे जवाहरात ख़रीद सको तो तो जलपरियाँ उन रत्नों की चमक से आकर्षित होकर तुम्हारे जहाज़ तक आ सकती हैं। जल परियों के महल से दूर होने पर ही मैं अगला क़दम बढ़ा सकती हूँ।”
फेनी की बात सुनकर जहाज़ी लौटकर वापस घर पहुँचा। उसने अपनी सारी उम्र की कमाई और जमा पूँजी लगाकर जौहरियों से ढेरों हीरे जवाहरात ख़रीद लिए। उन रत्नों को जहाज़ में जगह-जगह ऐसे लटका दिया कि वे दिन में सूरज की रोशनी में दमकते और रात की चाँदनी में चमकते थे। इस तरह रत्नों से सजे अपने जहाज़ को वह समुद्र में तैराने लगा। रत्नों की लालची जलपरियाँ जगह-जगह पर पानी की सतह पर आतीं है और गातीं:
“रत्नों से चमकता पोत तेरा
हमें अपने पास बुलाता है,
पाने को ये अनमोल रतन
मन में लालच भर जाता है,
दो पल को रोक पोत अपना
हमें जी भर इन्हें निरखने दे,
जो आए दया तेरे मन में
हमें हार, अँगूठी, कंगन दे!!”
एक दिन जहाज़ के आसपास सारी की सारी जलपरियाँ आकर यही गीत गाने लगीं, लेकिन नाविक तो अपना पोत लेकर आगे और आगे ही बढ़ता रहा। जलमहल से दूर, बहुत दूर चले जाने पर अचानक समुद्र के अंदर बहुत तेज़ गड़गड़ाहट हुई, लहरें जहाज़ से भी ऊँची उठने लगीं, ऐसी लहरें तो आज तक कभी किसी ने देखी न थीं। इस तूफ़ान में सारी जलपरियाँ समुद्र में डूब गईं। तभी पानी के नीचे से एक बहुत बड़ा बाज़ पक्षी निकला, जिसकी पीठ पर वृद्धा परी और फेनी बैठी थीं। पलक झपकते ही बाज़ उड़कर आँखों से ओझल हो गया। जहाज़ी ने उदास मन और आँसू भरी आँखों के साथ जहाज़ अपने घर की ओर मोड़ दिया।
लेकिन . . . जब वह घर पहुँचा तो उसकी बीवी घर के बाहर खड़ी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी!!!
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