छुटकी का भाग्य
अनूदित साहित्य | अनूदित लोक कथा सरोजिनी पाण्डेय15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मूल कहानी: ला बैशिया; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द स्नेक); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय
प्रिय पाठक
आज की कहानी दया, कृतज्ञता आदि उदात्त जीवन मूल्यों की स्थापना तो करती ही है, साथ ही प्लास्टिक सर्जरी, क्रायोजेनिक संरक्षण जैसी आधुनिक चिकित्सकीय प्रक्रियाओं की ओर भी संकेत करती है। वर्तमान से तुलना करते हुए यदि कहानी पढ़ी जाये तो आनंद कई गुना बढ़ जाता हैः
एक किसान की तीन बेटियाँ थी, किसान जब खेतों में काम करने जाता तो एक बेटी उसका खाना लेकर जाती थी। उन दिनों किसान दूर के खेतों में काम कर रहा था। एक दिन उसकी सबसे बड़ी बेटी की बारी खाना पहुँचाने की थी। बेटी खाना लेकर जब जंगल से होकर गुज़री तो वह बहुत थक गई थी। उसने सोचा दो मिनट सुस्ता ले। एक साफ़, चिकना पत्थर देखकर वह उस पर बैठी ही थी कि ज़मीन हिलने लगी और एक साँप मुँह खोले उसके सामने आ गया। बेचारी के हाथ से खाने की डलिया छूट गई, सब कुछ छोड़छाड़ कर वह बगटुट घर की ओर भागी। किसान को उस दिन भूखा ही रहना पड़ा। शाम को घर लौटने पर उसने बेटियों को ख़ूब डाँटा।
अगले दिन मँझली बेटी ने खाना लिया और चल पड़ी खेतों की ओर। वह भी सुस्ताने के लिए संयोग से उसी साफ़, चिकने पत्थर पर बैठी, जिस पर बड़ी बहन बैठी थी। उसके साथ भी वही हुआ जो बड़ी बहन के साथ हुआ था, ज़मीन हिली और मुँह खोले साँप उसके सामने आ गया। वह बेचारी भी अपने प्राण बचाकर भागी और घर पहुँच कर ही दम लिया।
अब अगले दिन सबसे छोटी बेटी ने पिता को खाना पहुँचाने का ज़िम्मा लिया। वह समझदार थी, उसने खाने की दो टोकरी ले लीं। बहनों से बोली, “मैं किसी से नहीं डरती। आज खाना मैं ले जाऊँगी।”
जंगल में उसके साथ भी वही हुआ जो पहले उसकी बहनों के साथ हुआ था। जब साँप का खुला मुँह उसके सामने आया, तो उसने खाने की टोकरी उसमें पकड़ा दी। लड़की की निडरता देख साँप उससे बोला, “मुझे अपने साथ ले चलो। मैं तुम्हारा भाग्य बदल दूँगा।” लड़की ने उसे अपने कपड़ों में छुपा लिया और भोजन लेकर पिता के पास चल पड़ी। जब घर लौटी तो साँप उसके कपड़ों में छिपा हुआ था, सब की आँख बचाकर उसने साँप को अपने पलंग के नीचे छुपा दिया। साँप दिन दूना-रात चौगुना बढ़ने लगा। अब उसे पलंग के नीचे छुपा कर रखना मुश्किल हो गया।
एक दिन साँप लड़की से बोला, “तुमने मेरी बहुत मदद की है मैं तुम्हारा एहसानमंद हूँ। अब मैं जंगल में वापस जाऊँगा। लेकिन जाने से पहले तुम्हें कुछ उपहार दूँगा—जब तुम रोओगी तो तुम्हारी आँखों से आँसू की जगह रुपहले मोती बरसेंगे, जब हँसोगी तो अनार के सुनहरे दाने झड़ेंगे और जब मुझे याद करके हाथ धोओगी तो पानी से मछलियाँ बन जाएँगी,” यह कहकर साँप सरकता हुआ जंगल में चला गया।
कुछ दिन बीते। एक दिन ऐसा हुआ कि घर में कुछ खाने को कुछ न था। इस समय छोटी बहन (छुटकी) को साँप की बात याद आ गई और वह एक परात में पानी लेकर उसमें हाथ धोने लगी। और यह क्या! परात मछलियों से भर गई! इस अजूबे को देखकर किसान और उसकी दो बड़ी बेटियाँ हैरान-परेशान हो गईं। उन्होंने आपस में सलाह की कि इस बात का पता किसी को नहीं चलना चाहिए। उन सबने मिल कर छुटकी को घर की दुछत्ती में बन्द कर दिया। दोनों बड़ी बहनें जलन और ईर्ष्या से परेशान थीं।
जिस कमरे में छुटकी को बंद किया गया था, उसमें एक खिड़की थी, जो राजा के बग़ीचे की तरफ़ खुलती थी। राजकुमार वहाँ अपने साथियों के साथ खेलने आया करता था। एक दिन जब राजकुमार अपने मित्रों के साथ गेंद खेल रहा था, तो गेंद के पीछे भागते हुए फिसल कर गिर पड़ा। राजकुमार की यह दशा देखकर छुटकी की हँसी निकल गई। जब वह खिलखिलाकर हँसी तो उसके मुँह से अनार के सुनहरे दाने झरने लगे, घबराकर उसने खिड़की के पट बन्द कर दिये। राजकुमार समझ ही न सका कि आख़िर हुआ क्या? और ये सुनहरे अनार के दाने आए कहाँ से?
कुछ दिनों बाद जब वह बाग़ में फिर खेलने आया तो देखा, जहाँ दाने गिरे थे, वहाँ एक अनार का पेड़ उग आया है और फलों से लदा है। उसने हाथ बढ़ाकर एक फल तोड़ना चाहा पर, आश्चर्य? वह उसकी पहुँच से ऊँचा हो गया। जिस फल की ओर भी वह हाथ बढ़ाता, वह उसकी पहुँच से थोड़ा-सा ऊपर हो जाता। उसका कोई साथी भी फल ना तोड़ सका। बात यहाँ तक पहुँची कि राज्य का कोई भी व्यक्ति, एक भी अनार न तोड़ सका, जैसे ही हाथ फल के पास पहुँचता, वह थोड़ा सा ऊँचा हो जाता था। आख़िरकार राजा ने राज्य के ज्योतिषियों को बुलवाया और इस बात पर विचार करने और इसका उपाय निकालने को कहा। बड़ी-बड़ी गणनाओं के बाद यह पता चला कि इस पेड़ से केवल वही लड़की फल तोड़ पाएगी जो राजा की पत्नी बनेगी!!
फिर क्या था राजा ने राज्य में मुनादी करा दी कि राज्य में जितनी भी विवाह योग्य युवतियाँ है, वे आए और अपने हाथों से अनार के पेड़ से फल तोड़ने की कोशिश करें, जो फल तोड़ पाएगी, वही राजकुमार की दुलहन और भावी महारानी होगी।
अब भला राजा की आज्ञा न मानकर अपनी मुसीबत कौन बुलाता, तो पूरे राज्य से कुमारी युवतियाँ आने लगीं, पर वह अजूबा अनार का पेड़ किसी के हाथों में अपना फल आने ही ना देता था। छुटकी की दोनों बहनें भी गई पर सीढ़ियाँ लगाकर भी कोई अनार का फल ना तोड़ सकी।
अब राजा को चिंता हुई। उन्होंने सिपाहियों को हर घर की तलाशी लेकर हर विवाह योग्य लड़की ढूँढ़ कर लाने की आज्ञा दी। दुछत्ती में बंदी, किसान की सबसे छोटी बेटी छुटकी को भी राजा के सिपाही निकाल कर ले आए। जैसे ही छुटकी अनार के पेड़ के पास पहुँची, उसकी डालियाँ झुक गईं और अनार टूट कर उसके हाथों में आ गए। सभी लोग ख़ुशी से झूम उठे। उन्हें उनकी भावी महारानी जो मिल गई थी!” ’दुलहन मिल गई-दुलहन मिल गई’ का शोर चारों ओर गूँज उठा। शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं।
किसान की तीनों बेटियों के लिए भी बुलावा आया। तीनों बहनें एक ही बग्गी में बैठ कर चलीं, परंतु बीच जंगल में पहुँचकर उन्होंने बग्गी रोक दी। उन्होंने छुटकी को उतरने को कहा। वे जलन और ईर्ष्या से बौराई हुई थीं। उन्होंने छुटकी के दोनों हाथ काट लिये और आँखें निकाल लीं। उसे बेहोशी की हालत में झाड़ियों में धकेल दिया। सबसे बड़ी बहन ने शादी का जोड़ा और गहने ख़ुद पहन लिए, सज-धज कर वह राजा के बेटे के पास पहुँच गई।
दुलहन की बदली शक्ल देखकर राजकुमार को बड़ी हैरानी हुई। परन्तु बहनों की शक्ल में कुछ तो समानता थी ही, सो राजकुमार ने मन ही मन सोचा कि शायद उससे ही रूप-रंग देखने-पहचानने में भूल हुई है। विवाह से वह मना नहीं कर सकता था।
इधर बिना आँख और हाथ वाली युवती छुटकी, जंगल में रोती, बिलखती पड़ी थी। कुछ समय बाद एक गाड़ीवान उधर से गुज़रा। उसको छुटकी पर दया आ गई। उसने उसे अपनी गाड़ी में बिठाया और चलने को हुआ तो छुटकी ने उससे ज़मीन पर देखने को कहा। गाड़ीवान क्या देखता है कि, ज़मीन पर रुपहले मोती भरे पड़े हैं! जो छुटकी के आँसू थे। गाड़ीवाले ने उन मोतियों को बटोर कर, बाज़ार में ऊँचे दामों में बेच दिया। उसे बहुत ख़ुशी थी कि उसने ऐसी लड़की पर दया की जो अंधी थी और हाथ न होने के कारण कोई काम करके उसकी सहायता करने में भी असमर्थ थी। और उसके कारण ही उसके पास धन आया था। दिन आराम से बीतने लगे।
अचानक एक दिन छुटकी को ऐसा लगा, मानो उसके पैरों से कुछ लिपट रहा है, यह वही साँप था, जिसको छुटकी ने अपने घर में रखा लिया था। वह बोला, “तुम्हें मालूम भी है कि तुम्हारी बड़ी बहन का ब्याह राजकुमार से हो गया है, और राजा की मृत्यु के बाद वह महारानी बन गई है? अब वह माँ बनने वाली है और उसे इन दिनों अंजीर खाने की ललक उठती है।”
छुटकी ने दयालु गाड़ीवान से कहा, “एक खच्चर पर अंजीर लादकर महल ले जाओ और रानी साहिबा को दे आओ।”
वह जाड़े का मौसम था। गाड़ीवान ने कहा, “इस ठिठुरते जाड़े के मौसम में भला अंजीर कहाँ मिलेंगे?”
लेकिन अगली सुबह जब वह उठा तो उसके घर के पास ही फलों से लदा अंजीर का पेड़ था। उस पेड़ में पत्ता तो एक भी न था, पर फल तने और डालों पर भरे हुए थे। उसने फल तोड़कर थैलों में भरे और अपने खच्चर पर लाद लिए।
“इस भरे जाड़े में जब मैं अंजीर बेचूँगा तो भला मुझे कितना महँगा बेचना चाहिए?” गाड़ीवान कहा।
छुटकी ने उससे कहा, “एक जोड़ा आँखें!”
. . . महल में जाकर उसने ऐसा ही कहा। परंतु राजा, रानी की बहन, वहाँ तक कि रानी, जो अंजीर खाने के लिए बेताब थी, यह मूल्य ना दे सकी।
तब दोनों बहनों ने आपस में बात की और यह तय किया कि हमारे पास जो छुटकी की आँखें रखी हैं, उन्हें ही देकर अंजीर क्यों न ले लें? अब वे उनके किसी काम की नहीं थीं। और उन्होंने आँखें देकर अंजीर मोल ले लीं।
गाड़ीवान छुटकी की आँखें लेकर घर आया। छुटकी ने अपनी आँखें फिर से लगा लीं और उसकी पहले जैसी नज़र वापस आ गई।
कुछ समय बाद गर्भवती महारानी को खुबानी खाने की इच्छा होने लगी। राजा ने गाड़ीवान के पास संदेशा भेजा कि जैसे वह अंजीर खोज लाया था, वैसे ही खुबानी भी तलाश कर लाए। गाड़ीवान थोड़ा घबरा गया।
पर प्रभु की लीला! अगले ही दिन उसके घर के पास का खुबानी का पेड़ फलों से लदा मानो उसकी राह ही देख रहा था। गाड़ीवान ने खुबानियों के थैले भरे और महल ले आया।
इस बार मूल्य पूछे जाने पर उसने कहा, “दो हाथ।”
अब! कोई भी अपने हाथ देने को तैयार नहीं था। राजा के दंड के डर से भी नहीं! एक बार फिर दोनों बहनों ने गुपचुप सलाह की और छोटी बहन के हाथ देकर खुबानियाँ ख़रीद लीं।
जब छोटी बहन को हाथ वापस मिले, तो वे उसकी बाँहों में ऐसे ही जुड़ गए मानो कभी कटे ही ना थे।
समय आने पर रानी को प्रसव हुआ। पर पैदा क्या हुआ? एक बिच्छू!!
पर संतान तो संतान है!
राजा साहब ने उत्सव मनाने के लिए पूरे शहर को दावत दी। छोटी बहन भी ख़ूब सज-धज कर दावत में पहुँची। उसके रूप रंग के कारण सबकी आँखें उसी पर अटक गईं!
जब राजा ने उसे देखा तो समझ गया कि यही उसकी असली दुलहन है। छुटकी ने भी उसको अपनी कहानी सुनाते हुए कहा—
"रो रो के मोती के आँसू टपकाए
हँस हँस कर अनार के दाने,
हाथों को धोने से मछली जो फिसली
तब राजा जी उसको पहचाने।"
दोनों दुष्ट बहनों को बिच्छू के साथ राजा जी ने चिता पर जलवा दिया और छुटकी के साथ ब्याह कर महल में सुख से रहने लगे।
“जैसे छुटकी के दिन बहुरे, वैसे ही सबके फिरें,
आनंद करें वे सब लोग, जो मेरी कहानी सुनें!!”
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