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मूल कहानी: ल' युओमो श्चे अस्कीवा सोलो डी नोटे; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अँग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द मैन हू केम आउट ओनली एट नाइट); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय 

प्रिय पाठक, मैं पिछले कई अंकों से आपके मनोरंजन और अपनी संतुष्टि के लिए इतालवी लोक कथाओं का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रही हूँ। मुझे यह विश्वास भी है कि इन कथाओं का जन्म भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश की धरती पर हुआ होगा, अतः कथाओं की मान्यताओं, अपेक्षाओं और शिक्षाओं में समानता देखकर मुझे आनंद मिलता है। 

हमारे देश की पौराणिक कथाओं में स्त्री के पतिव्रत की अनेक कथाएँ उपलब्ध हैं और प्रबुद्ध पाठक उनसे परिचित भी होंगे। आज की कहानी इस बात को स्थापित करने वाली है कि स्त्री के पतिव्रत का आदर और उसकी अपेक्षा संभवतः सार्वभौमिक है। अब यह विश्वास और आवश्यकता पुरुष की दुर्बलता का प्रतीक है या फिर मानवता के विकास की एक आवश्यक शर्त, यह बात विचारणीय है। आप कथा का आनंद लें और मेरी बात पर भी मनन करें:

बहुत समय पहले की बात है एक मछुआरा था, जिसकी विवाह योग्य तीन बेटियाँ थीं। उस मछुआरे से, एक ऐसे युवक ने, उसकी एक बेटी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की, जो केवल रात के समय ही घर से बाहर आता था। इस वजह से गाँव के लोग उसे कुछ अजूबा ही समझते थे, वह बस अलग-थलग ही रहता था। तो  मछुआरे की सबसे बड़ी बेटी ने इस युवक से विवाह करने से इंकार कर दिया। मँझली बेटी भी विवाह के लिए राज़ी न हुई, लेकिन सबसे छोटी बेटी ने हामी भर दी। 

एक रात दोनों का विवाह हो गया। शादी की रस्मों के बाद जब दूल्हा-दुलहन एकांत में हुए, तब दूल्हे ने अपनी दुलहन से कहा, “मैं तुम्हें अपना एक राज़ बताना चाहता हूँ, वास्तव में मुझे एक श्राप मिला हुआ है। मैं बस रात में ही मनुष्य के रूप में रह सकता हूँ। सुबह होते ही, दिन के उजाले में कछुआ बन जाता हूँ। इस श्राप उबरने का केवल एक रास्ता है कि मैं विवाह के तुरंत बाद अपनी पत्नी से अलग हो जाऊँ और दिन में कछुए के रूप में और रात को मनुष्य के रूप में रहते हुए, पूरी दुनिया का एक चक्कर लगा कर आऊँ। मेरे पास वापस लौटने तक यदि मेरी पत्नी सारे कष्टों को सहकर भी अपने पतिव्रत धर्म पर अडिग रह, मेरे प्रति समर्पित रहे, तभी मैं शाप मुक्त होकर पूरा पुरुष बन पाऊँगा। बोलो, क्या तुम मुझे इस श्राप से बचाने के लिए तैयार हो?” 

दुलहन बनी मछुआरे की बेटी ने तुरंत इस परीक्षा के लिए हामी भर दी। दूल्हे ने हीरे की एक अँगूठी अपनी दुलहन को पहनाते हुए कहा, “अगर इस अँगूठी को अच्छे काम के लिए इस्तेमाल करोगी तो यह तुम्हारे बड़े काम आएगी। वरना यह तुम्हारे लिए भी संकट ले आएगी।” इतना सब होते-होते रात बीत गई थी। दूल्हा कछुआ बन गया था और वह दुनिया का चक्कर लगाने की अपनी यात्रा पर चल भी पड़ा। दुलहन काम की तलाश में शहर की तरफ़ निकल पड़ी। 

वह अपने रास्ते जा ही रही थी कि उसने देखा एक बच्चा बहुत। बुरी तरह रो रहा है, बेचारी माता का भी बुरा हाल है। मछुआरे की बेटी ने दुखी माँ से कहा, “लाओ बच्चा मुझे दे दो मैं शायद इसे चुप करा पाऊँ!”

माँ ने कहा, “यह तो कई दिनों से ऐसे ही रोता रहता है, तुम वह पहली इंसान हो जिसे इस पर दया आई है!” 

मछुआरे की बेटी ने बच्चे को अपनी गोदी में लेकर पुचकारा, सहलाया और मन ही मन बुदबुदाई:

“अँगूठी के जादू से बच्चा चुप हो जाए, हँसे और खिलखिलाए!”

और सच में जादू हो गया! बच्चा जल्दी ही चुप होकर मुस्कुराने-खिलखिलाने लगा। बच्चे की माँ निहाल हो गई, उसने जी भर कर दुलहन को आशीर्वाद दिया और अब मछुआरे की बेटी चल पड़ी अपनी राह। 

वह एक नानबाई (बेकरी) की दुकान पर जाकर मालकिन से बोली, “अगर आप मुझे काम पर रख लेंगीं तो मैं आपको कभी निराश नहीं करूँगी।”

नानबाई की दुकान की मालकिन ने उसे काम पर रख लिया। दुलहन मेहनत से काम करती और जब पाव-रोटियाँ बनाती तो मन ही मन गुनगुनाती भी जाती: 

“ओ जादू की अँगूठी, कुछ ऐसा कर
 जब तक मैं काम करूँ इस दुकान पर
 यहीं से ख़रीदे रोटी सारा शहर“

सचमुच उसकी बनाई रोटियों में कुछ अलग ही स्वाद रहता, ग्राहकों की भीड़ हरदम लगी रहती। सब कुछ अच्छा चल रहा था। 

अब ग्राहकों की भीड़ में तीन ऐसे दीवाने भी थे, जो मछुआरे की बेटी के रूप पर मोहित हो गए। 

एक ने उससे कहा, “अगर तुम मेरे साथ एक रात गुज़ार लो तो मैं तुम्हें हज़ार रुपये दूँगा।”

लड़की ने अनसुना कर दिया। 

कुछ दिन बाद दूसरे महाशय उसके पास आए और एक रात के लिए दो हज़ार रुपये का प्रस्ताव रखा। दुलहन अब भी। शांत रही। 

कुछ समय बाद तीसरा मनचला भी उसके पास आया और बोला, “तुम एक रात मेरे साथ बिताओ और मुझसे तीन हज़ार रुपए ले लो।”

आए दिन की इस परेशानी से बचने के लिए उस दिन लड़की ने इस आशिक़ से तीन हज़ार रुपये ले लिए और उसे रात को दुकान पर आने का निमंत्रण दे दिया। 

जब आशिक़ आया तो लड़की ने कहा, “मैं आटे में मिलाने के लिए ख़मीर लेकर आती हूँ, तब तक तुम इस आटे को ज़रा सा गूँध दो। बस दो मिनट का काम है, फिर मैं और तुम!”

आशिक़ आटा गूँधने लगा। गूँधता गया-गूँधता गया-गूँधता गया। आटा मानो उसका हाथ ही नहीं छोड़ रहा था। आटा गूँधते-गूँधते सुबह का उजाला फैल गया। आप समझ ही गए होंगे कि यह उस जादुई अँगूठी की करामात थी जो दूल्हे ने विदा के समय अपनी दुलहिन को दी थी। सुबह के उजाले में अब दुलहन उसके पास आई और बोली, “वाह रे आशिक़!, सारी रात आटा गूँधने में निकाल दी? और मैं तुम्हारी राह देखती रही!”

आशिक़ मुँह लटकाए हुए चला गया। 

अब लड़की दो हज़ार देने वाले के पास गई। उससे रुपए लिए और रात को दुकान पर आने का बुलावा दे दिया। जैसे ही शाम ढली, वह उस युवक को लेकर दुकान के अंदर चली गई। उससे बोली, “ज़रा भट्टी में फूँक मारकर आग को जलाए रखो, बस मैं यूँ गई और यूँ आई।” 

बेचारा मनचला युवक रात भर भट्टी में फूँक मारता रहा पर आग फिर भी न भड़की। उसका मुँह फूँक मार-मार कर कुप्पा हो गया और सारी रात बीत गई। सुबह लड़की उसके पास आकर बोली, “तुमने तो कमाल ही कर दिया, मैं तुम्हारा इंतज़ार करती रही और तुम भट्टी में बस फूँक मारते रह गए!” 

यह युवक भी अपना-सा मुँह लेकर चला गया। 

कुछ दिनों के बाद तीसरे छैला की भी बारी आ गई। 

हज़ार रुपये देकर, रात का बुलावा पाकर यह जनाब भी दुकान में पहुँचे। लड़की ने इनसे भी कहा, “जब तक मैं आटे में ख़मीर मिलाऊँ तुम दरवाज़ा बंद करके मेरे पास आ जाओ।” छैला ने दरवाज़ा बंद किया और पीछे मुड़ा कि दरवाज़ा खुल गया। उसने वापस आकर फिर दरवाज़ा बंद किया और लड़की की तरफ़ बढ़ा, पर फिर द्वार खुल गया। यह अँगूठी की करामात थी कि दरवाज़ा बार-बार बंद किया जाता रहा पर हर बार वह खुलता ही रहा। इसी खुलने-बंद होने में सारी रात निकल गई! 

”वाह भाई वाह! तुम पूरी रात में दरवाज़ा भी न बंद कर पाए? अब उसे एक बार फिर खोलो और बाहर निकल जाओ!” लड़की ने सुबह होने पर छैला से कह दिया। 

कुछ समय बाद यह तीनों दिल-फेंक आशिक़ एक दूसरे से मिले और अपने ठगे जाने की बात उन्हें अब समझ में आई। 

तीनों ने जाकर थाने में शिकायत की रपट लिखा दी। 

अपराधी एक स्त्री थी, इसलिए शहर के क़ानून के हिसाब से चार महिला पुलिस अपराधी को पकड़ने के लिए भेजी गईं। जब वे चारों अपराधी दुलहन को पकड़ने पहुँची तो उसने अपनी जादुई अँगूठी से कहा, “जादू की अँगूठी, तू ऐसा कुछ कर यह चारों आपस में चलाएँ घूँसे-थप्पड़“।

फिर क्या था! नानबाई की दुकान के भीतर पहुँची यह चार पुलिसवालियाँ आपस में ही तकरार कर बैठीं और थप्पड़-घूँसे चलने लगे। सारी रात दुकान के अंदर हाय-तौबा मची रही। 

सुबह तक भी जब अपराधी को गिरफ़्तार करके थाने तक न लाया गया तो चार पुरुष पुलिस वालों को उनकी खोज ख़बर लाने के लिए भेजा गया। 

दुलहन ने जब चार पुलिस वालों को दुकान की ओर आते देखा तो सावधान हो गई। उसने अँगूठी से प्रार्थना की: 

”प्यारी अँगूठी, करामात दिखला
 इन चारों से मेंढक कूद करा”

देखते-देखते एक पुलिस वाला मेंढक की तरह ज़मीन पर चारों हाथों पैरों से फुदकने लगा। दूसरा उसको पकड़ने के लिए, बैठ कर, उसके पीछे फुदका। दूसरे का पीछा तीसरे ने किया और तीसरे का चौथे ने, और शुरू हो गई मेंढक-दौड़! 

इधर यह दौड़ का खेल चल रहा था उधर एक कछुआ रेंगता हआ दुकान की तरफ़ बढ़ रहा था। यह वही कछुआ था जो दुनिया का चक्कर लगाकर लौटा था। जैसे ही कछुए की नज़र अपनी दुलहन पर पड़ी वह एक सजीला जवान बन गया और फिर सारी ज़िन्दगी वह दिन और रात, सजीला जवान ही रहा। जब तक जिया अपनी दुलहन के संग ही रहा। 

तो इस बार की कहानी ख़त्म 
पैसा हुआ हज़म
ग़र फिर मिले तो लाएँगे 
इक नई कहानी हम॥

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