अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सर्प राजकुमार

 

मूल कहानी: इल रि सरपेंटी; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द सरपेंट); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स; 
हिन्दी में अनुवाद: ‘सर्प राजकुमार’ सरोजिनी पाण्डेय

 

एक राजा था और थी एक रानी, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी, इस बात से रानी बहुत दुखी रहती थी। बहुत पूजा-पाठ, व्रत-उपवास के बाद भी रानी की इच्छा पूरी न हुई। एक दिन वह खेतों में घूम रही थी, वहाँ उसने बहुत सारे जीव देखे छिपकली, चिड़िया, साँप सभी अपने बच्चों के साथ थे। यह सब देखकर रानी का दिल रोता रहा, वह सोचने लगी, “छोटे से छोटे जीव जैसे छिपकली, चूहे, चिड़िया, मेंढक, ये विषैले साँप सभी अपने बच्चों के साथ दिखाई देते हैं, एक मैं अभागी हूँ, जिसे कोई संतान नहीं है!” तभी उसके पास से साँपों का एक झुंड, जिसमें बहुत सारे सपोले थे, उसके पास से गुज़रा। रानी के मुँह से निकला, “यदि मेरे बच्चे के रूप में एक साँप भी हो तो मैं ख़ुश रहूँगी!” अब संयोग कुछ ऐसा हुआ कि रानी को कुछ दिनों बाद गर्भ रहने की सम्भावना लगी। पूरे राज्य में ख़ुशियाँ छा गईं। होते-होते वह समय भी आया जब रानी ने एक संतान को जन्म दिया और हुआ क्या? वह तो एक सपोला था! जब यह समाचार राज्य में फैला तो सभी हैरान रह गए, परन्तु रानी को समझ में आ गया कि यह उसकी प्रार्थना का ही असर है। वह सपोले को अपने पुत्र की तरह ही पालने लगी। उसके लिए एक सोने का पिंजरा बनवाया गया। रानी उसे भी वही भोजन देती जो वह स्वयं खाती। साँप की भूख बड़ी तगड़ी थी। वह ख़ूब खाता और दिनों दिन बड़ा होता जाता था। 

एक दिन जब नौकरानी उसके पिंजरे में उसे खाना देने, उसका बिस्तर लगाने आई तो साँप ने उससे कहा: 

“कह दो प्यारे पापा से 
अब मैं हो गया सयाना, 
सुंदर और धनवान दुलहनिया
मेरे लिए लाना।” 

नौकरानी यह आवाज़ सुनकर भाग गई‌। लेकिन खाना तो सर्पराज को देना ही था जब वह खाना लेकर आई तब साँप ने फिर वही बात दोहरायी:

“कह दो प्यारे पापा से 
अब मैं हो गया सयाना, 
सुंदर और धनवान दुलहनिया
मेरे लिए लाना।”

इस बार नौकरानी ने यह बात जाकर रानी को बता दी। यह सुनकर रानी रोने लगी, अब हम क्या करें? रानी ने चुपचाप अपने एक काश्तकार किसान को बुलवाया और उससे कहा, “तुम जितना चाहो उतना धन में तुम्हें दे दूँगी बस तुम अपनी बेटी को मुझे दे दो।” किसान ने सोचा-विचारा, रानी का विरोध भला करता भी तो कैसे? आख़िर वही उसके खेतों मालिकिन थी और फिर उसने अपनी बेटी रानी के हवाले कर दी। 

विवाह संपन्न हुआ। साँप ने अपने को दूल्हा ही माना। रात को दूल्हा-दुलहन अपने कमरे में सोने चले गए। 

कुछ समय बाद साँप ने अपनी दुलहन से पूछा, “क्या समय हुआ होगा?” 

उस समय तक भोर हो रही थी। दुलहन ने धीरे से कहा, “यह वह समय है जब मेरे पिताजी जाग जाते हैं, अपना हल उठाते हैं और खेतों की ओर चले जाते हैं!” 

“ओहो, तो तुम एक किसान की बेटी हो!” और उसने अपनी दुलहन को गले पर काट लिया। सुबह जब नौकरानी आयी तो देखा कि दुलहन मरी पड़ी है। साँप फिर नौकरानी बोला: 

“कह दो प्यारे पापा से 
अब मैं हो गया सयाना, 
सुंदर और धनवान दुलहनिया
मेरे लिए लाना।”

जब यह बात रानी को पता लगी तो उसने एक मोची को बुलवाया जो महल के पास ही अपनी बेटी के साथ जूतों का काम करने बैठा करता था। मोची भी धन के लालच में आ गया और उसने अपनी बेटी रानी को दे दी। सर्प राजकुमार का विवाह फिर कर दिया गया। 

विवाह की अगली सुबह सर्पराज ने फिर अपनी दुलहन से भोर में वक़्त पूछा। दुलहन बोली, “यह वह समय है जब मेरे पिताजी जाग जाते है और चमड़ा तैयार करने के लिए उसे हथौड़ी से कूटते हैं!” 

“अच्छा, तो तुम मोची की बेटी हो!” सर्प राजकुमार ने कहा और उसे भी गले पर डस लिया। 

अगली बार जब साँप ने विवाह के लिए संदेश भेजा तो रानी माँ ने एक दूसरे राजा से संपर्क किया और उससे उसकी बेटी का हाथ अपने बेटे के लिए माँगा। राजा ने इंकार कर दिया। लेकिन उसकी रानी राजकुमारी की सौतेली माँ थी। वह जल्द से जल्द इस सौतेली बेटी से छुटकारा पाना चाहती थी। वह राजा के ऊपर राजकुमारी का विवाह कर देने का दबाव डालने लगी। जब राजकुमारी को यह बात पता लगी तो वह अपनी स्वर्गीया माँ की समाधि पर गई, वहाँ उसने पूछा, “माँ तुम ही बताओ कि मैं क्या करूँ?” 

क़ब्र से आवाज़ आयी, “तुम यह शादी कर लो बेटी, लेकिन तुम अपनी शादी के लिए जो पोशाक बनवाओ वह सात परतों वाली बनवाना। विवाह की रात को जब तुम्हारी दासी कपड़े बदलवाने के लिए तुम्हारे पास आए तो तुम उसे वापस भेज देना। अपने दूल्हे के साथ जब अकेली हो जाओ तो उससे कहना कि सर्प राजकुमार, आओ हम तुम एक साथ कपड़े बदलें। जब मैं अपने शरीर से एक कपड़ा उतारूँ तब तुम भी एक उतारना। जब तुम अपना पहला कपड़ा उतरोगी तब साँप भी अपनी पहली केंचुली उतारेगा। अब तुम अपनी पोशाक की दूसरी परत उतारो तो देखती रहना कि साँप भी दूसरी केंचुल उतरे। बस तुम ऐसा ही करती जाना।”

राजकुमारी की “हाँ” के बाद विवाह संपन्न हो गया। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा राजकुमारी की स्वर्गीया माँ ने कहा था। राजकुमारी की पोशाक की हर परत के साथ साँप की केंचुल भी उतरती रही। जब सातवीं केंचुली भी उतर गई, तब दुनिया का सबसे सुंदर नवयुवक राजकुमारी के सामने खड़ा था। 

जब दोनों सोने जाने लगे तब आधी रात के बाद का समय था। सर्पराज कुमार ने अपनी दुलहन से पूछा, “समय क्या हुआ होगा?” 

दुलहन बोली, “यह वही समय है जब मेरे पिताजी रंगमहल से घर लौटते हैं।”

थोड़ी देर बाद साँप ने फिर समय पूछा। 

”यह वह समय है जब पिताजी खाना खाने बैठते हैं।”

“जब दिन निकल आया तब साँप ने फिर नई दुलहन से पूछा, “समय क्या हुआ है?” 

दुलहन बोली, “यह समय है, जब पिताजी कॉफ़ी पीना चाहते हैं।”

अब सर्प राजकुमार ने अपनी दुलहन को चूमा और कहा, “राजा की‌ बेटी, तुम मेरी सच्ची दुलहन हो! बस अब यह बात किसी को न बताना कि मैं रात में इंसान बन जाता हूँ, नहीं तो तुम मुझसे हाथ धो बैठोगी।”

ऐसा कह कर वह फिर साँप बन गया। कुछ दिनों बाद एक रात सर्प राजकुमार ने अपनी दुलहन से कहा, “अगर तुम चाहती हो कि मैं दिन में भी मनुष्य के ही रूप में रहूँ तो जैसा मैं कहूँ वैसा तुम्हें करना होगा।”

“पिया प्यारे, आप जैसा कहेंगे मैं बिल्कुल वही करूँगी,” दुलहन बोली। 

“हर रात को राज दरबार में गाने और नाचने का कार्यक्रम होता है। तुम उसमें जाना। तुम नई दुलहन हो, लोग तुमसे नाचने की फ़रमाइश करेंगे। लेकिन तुम किसी के भी साथ मत नाचना। जब तुम देखो कि एक नौजवान लाल कपड़ों में, सैनिक की वेशभूषा में सभा में आया है तब तुम उसके साथ नाचने के लिए उठ जाना क्योंकि वह स्वयं में ही होऊँगा।”

रात हुई सभागार में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुआ। राजकुमारी भी सज-धज कर नृत्य कक्ष में पहुँची। उसके वहाँ पहुँचते ही कई राज परिवारों के राजकुमार उसके साथ नाचने के लिए बेताब हो गए। लेकिन उसने नर्मी से कहा कि वह अभी नाचना नहीं चाहती। कुछ लोगों को राजकुमारी की यह बात अच्छी नहीं लगी। दूसरी तरफ़ कुछ लोगों ने यह भी सोचा कि वह अपने पति की कमी महसूस कर रही है, इसीलिए नाचने के लिए नहीं उठ रही है लेकिन कहा किसी ने कुछ भी नहीं। 

अचानक एक सजीला नौजवान लाल कपड़ों में सैनिक की वेशभूषा में नृत्य कक्ष में आया। राजकुमारी तुरंत अपनी जगह से उठी और उसके साथ नाचने लगी। पूरी शाम दोनों साथ-साथ नाचते रहे। 

सभा समाप्त हो गई। थोड़ी देर बाद राजा और रानी अपनी पुत्रवधू के साथ अकेले हुए। वे दोनों उबल पड़े और डाँटना शुरू किया, “यह क्या बात हुई कि तुमने सबके साथ नाचने के लिए इंकार कर दिया और एक अजनबी के साथ सारी शाम मग्न होकर नाचती रहीं! तुम्हारी ऐसा करने की भला हिम्मत भी कैसे हुई! ख़बरदार जो फिर कभी ऐसा किया।”

रात को जब वह अपने कमरे में सर्प राजकुमार के साथ अकेली हुई तब उसने अपने हुए साथ हुए व्यवहार की शिकायत राजकुमार से की! सर्प राजकुमार ने कहा, “इस ओर कुछ ध्यान मत दो। ऐसा तुम्हें तीन रातों तक लगातार सहना होगा और तब मैं हमेशा के लिए मानव रूप में आ जाऊँगा। 

“कल शाम मैं काले कपड़ों में सज कर आऊँगा और फिर तुम केवल मेरे साथ ही नाचना। हो सकता है नाचने के बाद मेरे माता-पिता तुम्हें मारें-पीटें भी, लेकिन मेरे लिए तुम यह सब सह जाना।”

उस शाम को फिर राजकुमारी ने किसी के भी साथ नाचने से इनकार कर दिया। लेकिन जब काले कपड़ों में सजा हुआ सजीला नौजवान आया तो उसके साथ नाचने लगी। 

कार्यक्रम के बाद राजा और रानी के पास पहुँचे, “क्या तुम हर शाम को हमें भरी सभा में बेइज़्ज़त करने पर तुली हुई हो? दोनों दहाड़े, “हम जैसा कहते हैं तुम वैसा ही करो, नहीं तो . . .” यह कह कर उन दोनों ने एक छड़ी उठाई और राजकुमारी को अच्छी तरह पीट दिया। दर्द से कराहती राजकुमारी अपने कमरे में पति के पास गई। उसे समझाते हुए उसके पति ने कहा, “मेरी प्यारी पत्नी, बस एक रात के लिए और यह सब सह लो! कल शाम को मैं एक साधु के वेश में आऊँगा।”

तो भई, तीसरी रात भी आ गई! राजकुमारी ने सभा में मौजूद सभी नौजवानों, राजकुमारों को छोड़ उस भिक्षु के साथ नाचना पसंद किया। 

यह तो हद ही हो गई थी! 

सबके सामने भरे दरबार में राजा और रानी ने एक छड़ी उठाई और लड़की और साधु दोनों को पीटना शुरू कर दिया। साधु डंडों से बचने की कोशिश करता रहा लेकिन राजा-रानी के ग़ुस्से के आगे उसकी एक न चली! अचानक वह भिक्षु एक चिड़िया में बदल गया, कोई छोटी-मोटी चिड़िया नहीं, बड़ी-सी चिड़िया और खिड़की के शीशे तोड़ता हुआ वह बाहर उड़ गया राजकुमारी चिल्लायी, “देखिए आप लोगों ने क्या कर डाला! वह तो आपका बेटा था।” 

और राजकुमारी ने उन्हें सारी बात बता दी! 

अब राजा और रानी के दुख का ठिकाना ना रहा, वे दोनों अपना सिर धुन-धुन कर रोने-पीटने लगे और बहू से माफ़ी माँगने लगे कि उन्होंने अपने बेटे के मनुष्य बन जाने के काम में बाधा डाली। राजकुमारी ने कहा, “हमारे पास एक क्षण भी बर्बाद करने के लिए नहीं है।” उसने झटपट अशर्फियों भरी हुई दो थैलियाँ उठाईं और उसी तरफ़ दौड़ती चली, जिधर वह बड़ी चिड़िया उड़ कर गई थी। जाते हुए उसने एक आदमी को एक दूकान के पास टूटे हुए शीशे के टुकड़ों के ढेर के पास फूट-फूटकर रोते देखा। राजकुमारी ने उससे पूछा, “क्या हुआ आप रोते क्यों हैं?” उसने बताया कि एक बड़ी-सी चिड़िया उड़ते-उड़ते उसकी दुकान में रखे सारे शीशे तोड़कर चली गई है।” 

“इन सब का क्या दाम होगा? क्योंकि वह चिड़िया मेरी थी।”

“मेरा मालिक कहता है कि इन टूटे हुए शीशों का दाम पाँच अशर्फ़ियाँ था।” 

राजकुमारी ने झटपट उसे पाँच अशर्फ़ियाँ निकाल कर देते हुए कहा, “अब यह बताओ कि वह चिड़िया किधर गई है?” 

“ इस तरफ़ सीधे!” लड़के ने हाथ से इशारा किया। इस तरफ़ कुछ दूर जाने पर राजकुमारी को एक सुनार की दुकान मिली, वहाँ सुनार तो नहीं था लेकिन उसका कारीगर रोता हुआ बैठा था। 

राजकुमारी ने उसके रोने का कारण पूछा। कारीगर ने दुख से भीगे स्वर में बताया कि एक बड़ी-सी चिड़िया इस तरफ़ से उड़ी और जाते-जाते उसकी दुकान में तोड़फोड़ मचा आ गई। अब जब मालिक आएगा तो उसे तो शायद मार ही डाले! 

“जो चीज़ें चिड़िया ने तोड़ी हैं उनका दाम भला कितना होगा?” राजकुमारी ने पूछा ‌

कारीगर ने रोते-रोते कहा, “भला हो कि मालिक मुझे मार ही डाले, मैं तो इतने पैसे चुकाने की बात सोच भी नहीं सकता।”

“मैं तुम्हारे नुक़्सान की भरपाई करूँगी क्योंकि वह चिड़िया मेरी थी।” 

लड़के ने दाम जोड़ना शुरू किया। उसकी सूची लंबी ही होती जा रही थी। डरते-डरते उसने कहा, “दाम तो हज़ार अशर्फ़ियाँ तक पहुँच गया!”

राजकुमारी ने एक थैली अशरफ़ियाँ उसे देते हुए कहा, “यह लो, लेकिन यह बताओ कि चिड़िया गई किधर?” 

“नाक की सीध में, आगे की ओर!”

राजकुमारी के आगे चले जाने पर कारीगर ने पाँच सौ अशर्फ़ियाँ तो मलिक को हर्जाना दे दिया और बाक़ी की अशर्फ़ियों से अपने लिए नई दुकान खोल ली। 

कुछ आगे जाने पर राजकुमारी को एक बहुत बड़ा पेड़ दिखाई दिया, जिस पर अनेक तरह की चिड़िया घोंसला बनाए हुए थी। वहीं पर राजकुमारी को अपना पति भी दिखाई दिया। उसने कहा, “पिया प्यारे, नीचे आओ और मेरे साथ घर चलो।” 

चिड़िया अपनी जगह से हिली भी नहीं। राजकुमारी पेड़ पर चढ़ गई। उसने पत्थर भी पिघला देने वाली करुण आवाज़ में, रोते हुए कहा, “घर चलो मेरे स्वामी!!”

उत्तर में उस बड़े पक्षी ने राजकुमारी की आँख पर अपनी चोंच मारी।  बेचारी पत्नी बार-बार अनुनय विनय करती रही और अपनी बची हुई एक आँख से आँसू ढरकाती रही। अब उस पक्षी ने राजकुमारी की दूसरी आँख पर भी चोंच मार दी। लड़की बिचारी बिलबिलायी, “अब मैं अंधी हो गई, मुझे रास्ता दिखाओ मेरे पतिदेव!” पक्षी ने उसके दोनों हाथों पर दो बार चोट मार कर उन्हें काट डाला और फिर उड़ कर अपने माता-पिता के महल पर जा बैठा जहाँ वह मनुष्य रूप में आ गया। 

महल में तो ख़ुशियाँ मनायी जाने लगीं। माँ ने जब अपनी पुत्रवधू को नहीं देखा तो वह ख़ुश हो गई और अब मानव रूप में आ गए अपने सर्प राजकुमार से बोली, “तुमने उस बेशर्म औरत को मार कर बहुत अच्छा किया!”

उधर राजकुमारी सड़क पर हाथ बढ़ा कर इधर-उधर टटोलती चल रही थी, साथ ही रोती हुई कहती जाती थी, “मुझ अंधी-लूली का अब क्या होगा!”

तभी एक दुबली-पतली छोटी सी बूढ़ी स्त्री ने उससे पूछा, “सुंदरी, तुम्हें क्या हुआ? क्यों रोती हो?” 

वह स्त्री और कोई नहीं देवी माँ थीं। उन्होंने राजकुमारी के हाथ पर अमृत छिड़का और उसके दोनों हाथ स्वस्थ हो गए। फिर उन्होंने अंजलि में जल देकर उससे कहा, “अपना चेहरा धो लो!” ऐसा करते ही राजकुमारी की आँखें भी ठीक हो गईं। फिर उन्होंने उसे एक जादुई छड़ी देते हुए कहा, “इससे तुम जो भी माँगोगी सब तुम्हें मिलेगा।” ऐसा कहकर माता अंतर ध्यान हो गईं। राजकुमारी ने जादुई छड़ी से अपने लिए एक सुंदर महल माँगा जो हीरे मोतियों से जड़ा था जिसके कमरों के अंदर एक सुनहरी मुर्ग़ी अपने सुनहरे चूज़ों के साथ क्लक-क्लक करती घूम रही थी। बग़ीचे में सुंदर-सुंदर सुनहरे पक्षी उड़ रहे थे। पूरे महल में दास-दासी सेवा के लिए तैयार थे। राजकुमारी के लिए रेशमी चँदोवा तना हुआ सुंदर सिंहासन था। राजकुमारी उस सिंहासन पर पर्दों के पीछे जा बैठी। 

अगले दिन सुबह के समय राजा के बेटे (सर्प राजकुमार) ने उस महल को देखा, “पिताजी पिताजी,” वह बोला “इस सुंदर महल को देखिए।” राजकुमार ने जिधर भी देखा उधर ही उसे सुनहरे पशु-पक्षी इधर-उधर घूमते उड़ते हुए दिखाई देते थे। यह लोग भला कैसे लोग हैं, जिन्होंने रातों-रात इतना बड़ा महल बना लिया!! राजकुमार सोच में पड़ गया। इस समय राजकुमारी ने भी परदे हटाकर खिड़की से बाहर देखा। 

“पिताजी, पिताजी, कैसी अनोखी है वह सुंदर स्त्री! मैं उसे अपनी पत्नी बनना चाहता हूँ!” राजकुमार बोला। 

“तुम ख़ुद वहाँ जाओ। मैं कैसे बता सकता हूँ कि वह कौन है? क्या तुम्हें लगता है कि वह तुम्हारी और देखेगी भी! उसके बारे में सोच कर तुम बस अपना समय बेकार कर रहे हो।”

लेकिन राजा के बेटे ने अपना मन पक्का कर लिया था। उसने सोने का क़सीदा किया हुआ एक सुंदर वस्त्र सामने के महल की राजकुमारी के पास भेजा। उस सुंदरी पड़ोसन ने उस ख़ूबसूरत कपड़े को अपनी मुर्ग़ी और उसके चूज़ों के ऊपर फेंक दिया। उपहार लेकर गई हुई दासी ने लौट कर बताया, “हम आपसे क्या बताएँ राजकुमार, उसकी रुचि आप में तनिक भी नहीं है।” उपहार का जो हाल हुआ था वह भी उसने कह सुनाया। 

“लेकिन मैं तो उसे बहुत पसंद करने लगा हूँ!” राजकुमार ने कहा और एक क़ीमती अँगूठी सामने के महल में भिजवाई। महल की राजकुमारी ने वह अँगूठी अपनी चिड़ियों के सामने फेंक दी। उपहार लेकर गई हुई दासी ने शर्म से अपना सर झुका लिया और लौट कर सारा हाल राजा, रानी और राजकुमार को बताया। 

बहुत सोचने के बाद सर्पराज कुमार ने अपने लिए एक ताबूत बनवाया। वह उसमें लेट गया और इस ताबूत को पड़ोसन राजकुमारी के घर ले चलने को कहा। राजकुमारी ने जब ताबूत देखा तो उसके पास आई और अंदर झाँका। अब उसके अंदर लेटा राजकुमार उसे पहचान गया और बोला, “ओह तुम! मेरी पत्नी! मैं कितना ख़ुश हूँ कि आख़िरकार तुम मुझे मिल गईं। आओ मेरे महल में वापस चलो।”

राजकुमारी ने उसे कठोर आँखों से देखा, “जो तुमने मेरे साथ किया है क्या वह भूल गए?” 

“मैं तो एक शापित था, मेरी प्यारी।”

“लेकिन तुम्हें पाने के लिए तीन रातों तक मैं अजनबियों के साथ नाची। तुम्हारे माता-पिता ने मुझे पीटा, बेइज्जत किया!”

“अगर तुम वह सब नहीं सहतीं तो मैं हमेशा साँप ही बना रहता।”

“और जब तुम चिड़िया बन गए, तब क्या? तुम तब साँप तो नहीं थे। तुमने मेरी आँखें फोड़ दीं और मेरे हाथ काट कर मुझे लूली बना दिया!”राजकुमारी बोलती जा रही थी। 

“अगर मैं वैसा नहीं करता तब भी मैं साँप ही बना रहता, मेरी प्यारी पत्नी!” 

राजकुमारी ने इन बातों पर बहुत देर तक विचार किया, “ठीक है! तब तो जो तुमने किया वह ठीक ही किया। चलो हम फिर से पति-पत्नी बन जाते हैं।” राजकुमारी ने अंत में कहा। 

जब राजा-रानी ने सारी कहानी सुनी तो वे राजकुमारी के पैरों पर गिर पड़े और अपनी ग़लतियों के लिए माफ़ी माँगी। 

इस तरह सर्प राजकुमार बन गया युवराज और राजकुमारी, उसकी प्यारी पत्नी बनी युवरानी। 
और इसके साथ ही ख़त्म हुई यह सर्प राजकुमार की कहानी। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

 तेरह लुटेरे
|

मूल कहानी: इ ट्रेडेसी ब्रिगांनटी; चयन एवं…

अधड़ा
|

  मूल कहानी: ल् डिमेज़ाटो; चयन एवं…

अनोखा हरा पाखी
|

  मूल कहानी:  ल'युसेल बेल-वरडी;…

अभागी रानी का बदला
|

  मूल कहानी: ल् पलाज़ा डेला रेज़िना बनाटा;…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा

कविता

ललित निबन्ध

सांस्कृतिक कथा

आप-बीती

सांस्कृतिक आलेख

यात्रा-संस्मरण

काम की बात

यात्रा वृत्तांत

स्मृति लेख

लोक कथा

लघुकथा

कविता-ताँका

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं