धूप रात माटी
काव्य साहित्य | कविता शैलेन्द्र चौहान4 Feb 2019
बहुत सारे दर्द को अहसासती
तुम साथ मेरे चल रही हो
जुड़ गई हर मुस्कान
मुझसे तुम्हारी
नींद में अलसाती मदमाती
बेख़बर
फिर भी जुड़ी हो इस तरह
जैसे फूलों में महक
चमक तारों में
आहिस्ता-आहिस्ता
पाँव घिसटाती चल रही हो
तुम...
धूप,रात,माटी
और मौसम
कितने सलौने
सब ठुकराती चल रही हो
तुम साथ मेरे चल रही हो
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