अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

लुका छिपी पक्षियों के साथ

आज हल्की ठंडी हवा चल रही है 
धूप भी बहुत तेज़ है ,
सर्दी फिर भी काफ़ी है ,
बाहर बग़ीचे में 
धूप-छांह में बैठना मनभावन है। 
सुनो मैं पकड़मपकड़ाई ,
चोर सिपाही / लुका छिपी खेल रही हूँ ,
तुम कर हँसना मत - 
कि बचपन अभी भी नहीं गया। 
एक तरफ़ पक्षी हैं,
जो कभी इस डाल कभी उस डाल,
कभी पत्तों में - 
कभी फुनगी में छुप जाते हैं, 
मेरी नज़रें उन्हें खोजती हैं 
कभी खंजन पकड़ा जाता है 
तो कभी गौरैया. . .
कभी पीली  चोंच वाली भूरी चिड़िया, 
जो इस फुनगी से दूसरी में छिपती 
चूँ  चूं चीं चीं कर कहती है -
मुझे खोजो तो जानूँ? 
तभी सेब से लदे पेड़ पर सेब चखने ,
दो चार बचे नाशपाती का स्वाद सँजोने, 
या  ज़मीन पर कीड़े, गिरे फल खाने ,
कोई चिड़िया इधर उधर देखती,
डरती डरती सी, 
नज़र बचा कर आ जाती है।
पर दूसरे पल 
मुझसे आँख मिलते ही 
जाने कहाँ उड़ जाती है। 
बड़ा रोमाचंक है 
यह लुकाछिपी का खेल । 
है न - 
न कोई हारता है 
न कोई जीतता है
खेल चलता रहता है । 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

सांस्कृतिक आलेख

सांस्कृतिक कथा

हास्य-व्यंग्य कविता

स्मृति लेख

कविता

ललित निबन्ध

कहानी

यात्रा-संस्मरण

शोध निबन्ध

रेखाचित्र

बाल साहित्य कहानी

लघुकथा

आप-बीती

वृत्तांत

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

बच्चों के मुख से

साहित्यिक आलेख

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं