विवशता
काव्य साहित्य | कविता शैलेन्द्र चौहान11 Dec 2018
एक लंबी सुरंग
खड़ी प्रेत छाया
द्वार पर उसके
निकलने का रास्ता नहीं कोई
प्रारंभ में चले थे जहाँ से
धसक कर टूट चुकी
अब सुरंग वहाँ
मुश्किल है पहचानना अंधेरे में
था उसका कैसा और
किस स्थिति में रचाव
छिन्न भिन्न रास्ता पीछे
सामने विकट स्थितियाँ
भयावह आकृति वह
डर पैठा अंतर में सघन
मन और मति दोनों
कर गया अस्थिर
चेतना है शेष इतनी
निकल सकता है रास्ता
सकुशल बच निकलने का
कुछ क्षणों के लिए यदि
हट जो वह भयंकर आकृति
डरती है प्रेत छाया
जिस आग और लोहे से
दोनों नहीं हैं पास
अपने !
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