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क्या होता?

क्या होता?
कभी यूँ ही बैठे-बैठे मैं सोचती हूँ, 
शब्दों की महिमा मन ही मन गुनती हूँ, 
 
उनींदे शिशु को जब माँ थपकी दे सुलाती
शब्दों के अभाव में उसे लोरी कैसे सुनाती?
स्नेह और ममत्व तो दे देती अपने स्पर्श और चुंबन से
पर लोरी के बिना उन्हें परीलोक कैसे पहुँचाती?
 
गुरु के आश्रम में शिष्य सीख लेते आचार-व्यवहार
शब्दों के बिना वे मंत्र कैसे पाते?
कैसे गुंजारित होता आश्रम मंत्रोच्चार से! 
मार्गदर्शक वेदों को हम कैसे पाते?
 
शब्द न होते तो कैसे बनते भजन-कीर्तन
ईश्वर तक अपना निवेदन हम कैसे पहुँचाते?

निकट होने पर प्रेमी नैन-सैन से करते बतियाँ 
दूर होने पर प्रेमपत्र तो क़तई न लिख पाते!
विरह की वेदना तो हो जाती प्रकट आहों से
पर कालिदास मेघदूतम् तो न लिख पाते!
 
शब्द ही न होते तो कैसे बनती भाषा?
भिन्न भाषा-भाषी फिर कैसे टकराते?
होती न भाषाएँ तो क्या युद्ध भी न होते!
वसुधा के सारे प्राणी क्या एक कुटुंब हो पाते?
 
क्या होता यदि शब्द ही न होते?
कभी मन ही मन मैं यूँ ही गुनती हूँ, 
शब्दों की महिमा के बारे में सोचती हूँ।

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