लोकतंत्र
काव्य साहित्य | कविता शैलेन्द्र चौहान21 Feb 2019
चीत्कार! हाहाकार!
भयातुर आँखें!
सिसकती सभ्यता
संस्कृति है कराहती
प्रसन्न और संतुष्ट हैं
चिकने धूर्त राजनयिक
तुंदियल, भ्रष्ट,
व्याभिचारी राजनेता
इसीलिए
लोकतंत्र स्वस्थ है?
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