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प्रिय मित्रो,

तीन महीने के अंतराल के बाद साहित्य कुंज अपलोड कर रहा हूँ। पिछले सम्पादकीय में लघुकथा लेखन के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की थी। लघुकथा प्रेमियों ने मेरे विचारों के साथ सहमति प्रकट की। इस बार बात ग़ज़ल की करते हैं।

जानता हूँ कि जो कुछ भी शायरी स्तम्भ में प्रकाशित हो रहा है, उनमें बहुत कुछ ग़ज़लनुमा तो है पर शुद्ध ग़ज़ल नहीं है। इसीलिए मैं उसे ग़ज़ल न कहकर दीवान की एक रचना की तरह प्रकाशित कर देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि शायद लेखक प्रोत्साहित होकर अपने लेखन को सुधारने का प्रयास करें। ग़ज़ल के नियम बहुत कड़े हैं और उनको समझ कर और उनका पालन करते हुए लिखी गयी रचना को सही मायनों में ग़ज़ल कहा जा सकता है। नियमों के बारे में स्वयं मैंने बहुत बार पढ़ा भी और समझने का प्रयास भी किया है। इन प्रयासों के बाद यह समझ भी आया कि बिना उस्ताद के यह साहित्यिक विधा समझना दुष्कर है।

दो महीने पहले टोरोंटो के हिन्दी राइटर्स गिल्ड के एक सदस्य अखिल भंडारी जी ने ग़ज़ल लेखन पर एक कार्याशाला की। अखिल भंडारी शुद्ध ग़ज़ल लिखते हैं और उनको एक-एक शब्द का चयन करते हुए देखा है। गिल्ड के कुछ अन्य सदस्य भी शुद्ध ग़ज़ल लिखते हैं - जैसे कि जसबीर कालरवी और मानोशी चटर्जी। इन कवियों/शायरों ने इस कला को निखारने के लिए परिश्रम भी किया है और सिद्धहस्त शायरों की शागिर्दी भी की है।

साहित्य कुंज में शायरी स्तम्भ को संपादित करने के लिए मैंने अखिल भंडारी जी से सहायता माँगी है और उन्होंने यह बीड़ा उठा भी लिया है। इस अंक से वह इस स्तम्भ का संपादन शुरू कर रहे हैं। इस स्तम्भ में केवल ग़ज़ल का प्रकाशन ही नहीं होगा परन्तु ग़ज़ल लेखन का व्यवहारिक मार्गदर्शन भी होगा। अखिल जी "तरही" ग़ज़ल के माध्यम से और ग़ज़लों की तक्तीअ करते हुए ग़ज़ल सिखाने का प्रयास करेंगे। आशा है कि ग़ज़ल लिखने में रुचि रखने वाले लेखक इस में भाग लेंगे। मैं अखिल भंडारी जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने यह दायित्व सँभाला है।

इस अंक में शायरी कोई भी रचना प्रकाशित नहीं कर रहा है। जो भी ग़ज़लें मेरे पास हैं, वह सभी अखिल जी को सौंप रहा हूँ ताकि वह उनका चयन और संपादन कर सकें और लेखकों से संपर्क स्थापित कर सकें। आशा है कि सदा की तरह आप सभी का समर्थन मिलेगा।

- सादर
सुमन कुमार घई

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