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प्रिय मित्रो,

आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! आज नव वर्ष की पूर्व-संध्या में सम्पादकीय लिखने बैठा हूँ। इस समय भारत में सुबह के चार बजे हैं। कुछ घण्टों के बाद नव वर्ष के प्रथम सूर्योदय की स्वर्णिम किरणों से भारत जगमगा उठेगा। नव वर्ष की पहली भोर आशाओं के साथ आती है। न जाने कितने कवियों ने अपने अनुभवों को अपने शब्दों में बाँधा है। कल सुबह भी नव ऊर्जा का संचार होगा और यह भावों में प्रस्फुटित हो एक निर्झर की तरह बहने लगेगी। 

सोच रहा हूँ कि एक और वर्ष बीत गया। स्वाभाविक है कि मैं भी अन्यों की तरह पलट कर बीते वर्ष की ओर देखूँ। क्या खोया, क्या पाया इसका आकलन करना क्या उचित है? मेरे विचार से तो नहीं। सोचता  हूँ कि जो पाया वह तो मेरा कर्म था और जो खोया—वह प्रारब्ध था मेरा। फिर कैसा उपलब्धि का गर्व और खोने का शोक। अच्छा है कि पलट कर देखो ही मत, सूर्योदय की ओर देखो और उसी से प्रेरणा लेकर आगे चल दो। यह हमारा सौभाग्य ही होता है कि हमें अपने-से विचारों वाले साथी मिल जाते हैं, जिससे जीवन यात्रा सुगम हो जाती है। 

सच कहूँ तो साहित्य कुञ्ज के प्रकाशन और सम्पादन ने मेरी जीवन की दिशा ही पलट दी। इस वर्ष, इसे प्रकाशित करते हुए बाईस वर्ष हो जाएँगे। साहित्य कुञ्ज को प्रकाशित करने का उद्देश्य कुछ भी रहा हो, उसकी बात नहीं करना चाहता, बस प्रकाशित कर रहा हूँ; यही महत्वपूर्ण है। मैं तो यह भी जानता कि किस के आगे अपनी कृतज्ञता का भाव प्रकट करूँ कि मैं साहित्य कुञ्ज प्रकाशित कर पा रहा हूँ। इस यात्रा के दौरान अनगिनत नवअंकुरित लेखकों से लेकर वट-वृक्ष जैसे लेखकों की साहित्यिक छाया तक मिली। बहुतों से सीखा और बहुतों को सिखाया। यह प्रेम-परिश्रम मेरी शिराओं में रक्त की तरह दौड़ता है। साहित्य मेरे लिए प्राण-वायु की तरह है। मेरे जीवित रहने का माध्यम बन चुका है यह।

नए वर्ष के लिए संकल्प निर्धारित करने की प्रथा है। मैं भी कुछ संकल्प आपके साथ साझा करना चाहता हूँ। जैसा कि पहले भी बता चुका हूँ कि तकनीकी स्तर पर साहित्य कुञ्ज को आधुनिक प्रोग्रामिंग द्वारा बनवा रहा हूँ। उसे पूर्ण करना पहला संकल्प है। हिन्दी के प्रूफ़रीडिंग की यूटिलिटी पर काम करवा रहा हूँ। इसमें अभी कुछ समस्याएँ हैं, जिनका निदान खोजा जा रहा है। इस समय यह लगभग १०,००० शब्दों की क्षमता रखता है। विराम चिह्नों को सही करने की क्षमता इस समय लगभग ९५% हो चुकी है। चार-पाँच सौ शब्दों की रचना को तीन-चार सेकेंड में प्रूफ़रीड कर सकता है। कुछ समस्याएँ भी हैं। मैं देख रहा हूँ कि कुछ लेखकों की सामग्री को प्रूफ़रीड करते हुए कुछ त्रुटियाँ रचना में बढ़ जाती हैं। अधिकतर लेखकों की रचना में यह समस्या नहीं आती। ऐसा क्यों होता है, इसमें हम उलझे हुए हैं। हो सकता है कि हिन्दी टाइपिंग के लिए लेखक कौन सा की-बोर्ड का प्रयोग करता है, उसका प्रभाव हो। काम चल रहा है। आशा है कि शीघ्र ही इसे मैं रिलीज़ कर दूँगा। यह मेरा दूसरा संकल्प है।

तीसरा संकल्प है, विशेषांक प्रकाशन का। डॉ. शैलजा सक्सेना के सम्पादन के अन्तर्गत कुछ विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। पिछले वर्ष से गतिरोध आ गया है। नियमित विशेषांक प्रकाशित करने का मार्ग खोजना तीसरा संकल्प है।

चौथा संकल्प साहित्य कुञ्ज की यूट्यूब चैनल पर अधिक सक्रिय होने का है।

और अंतिम संकल्प  . . . शायद अभी मैं भी नहीं जानता।

—सुमन कुमार घई

टिप्पणियाँ

प्रकाश मनु 2025/01/13 09:55 PM

वाह, सुंदर! बहुत सुंदर संपादकीय लिखा आपने भाई घई जी। मन में ‌शुभ उत्साह और ऊर्जा का संचार करने वाला।‌ मैं जीवन भर संपादन‌ से ही जुड़ा रहा। पहले दिल्ली प्रेस की 'सरिता', 'मुक्ता', 'गृहशोभा' सरीखी पत्रिकाओं का संपादन। फिर हिंदुस्तान टाइम्स की लोकप्रिय बाल पत्रिका 'नंदन' का लंबे अरसे तक संपादन करते हुए। और अंत में प्रभात प्रकाशन की ख्यात साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य अमृत' के संपादन की जिम्मेदारी संभालते हुए। इतने लंबे अरसे तक संपादन से जुड़ा होने के नाते, मैं जानता हूं कि यह कितनी जिम्मेदारी का काम है। बेहद कठिन और श्रमसाध्य भी।‌ किसी पत्रिका के संपादन का अर्थ है, अपने जीवन का हर क्षण इस गुरुतर कार्य के लिए समर्पित करता।‌ दिल में गहरी दीवानगी हो, तब ऐसे काम होते हैं।‌ और अपना सब कुछ अर्पित करके भी, बेइंतिहा खुशी होती है। मैं इसे अपने अनुभव से जानता हूं, इसलिए आपके शब्दों में जो‌ गहरी दीवानगी है, और पंक्तियों के बीच की खाली जगह में जो कुछ अनलिखा आप लिख गये हैं, उसके मर्म को भी महसूस कर रहा हूं। आपकी इस निरंतर तपस्या ने ही 'साहित्य कुंज' को इस कदर लोकप्रिय और अपने आप में मुकम्मल पत्रिका बनाया है। इसीलिए इसके जरिए आप साहित्य की इतनी बड़ी तपस्या कर पा रहे हैं। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह आपको इतनी शक्ति और सामर्थ्य दें कि आप इस साहित्य यज्ञ‌ को निरंतर जारी रखें। मेरा बहुत-बहुत स्नेह और नव वर्ष की शुभकामनाएं, प्रकाश मनु

महेश रौतेला 2025/01/12 02:48 PM

सुन्दर संपादकीय।

डॉ मृणाल वर्मा 2025/01/11 05:17 PM

नववर्ष के अवसर पर शानदार संबोधन के लिए धन्यवाद। आपको भी नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ????

मधु शर्मा 2025/01/01 03:48 PM

आदरणीय संपादक जी आपको व साहित्य कुञ्ज के परिवार को नववर्ष की शुभकामनाएँ। प्रभु शीघ्र ही आपके सभी संकल्प अवश्य पूरे करेंगे क्योंकि इनमें आपका स्वयं का कोई स्वार्थ न होकर साहित्य जगत के प्रति निश्छल सेवा व अथक परिश्रम स्पष्ट झलक रहा है।

सरोजिनी पाण्डेय 2025/01/01 08:22 AM

आदरणीय संपादक महोदय, वास्तविकता के आधार पर दृढ़ता से खड़ा किया गया सुंदर संपादकीय। दिल से दिल तक। मेरा भी यही मानना है कि हर सूर्योदय एक नया प्रारंभ है और एक सूर्यास्त नई आशा की किरण

राजनन्दन सिंह 2025/01/01 07:36 AM

नववर्ष 2025 मंगलमय हो! एकल श्रम संचालित साहित्यकुञ्ज अपने 22 वें वर्ष में निरंतर प्रगतिशील है। संपादक महोदय को बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं सादर प्रणाम । मुझे गर्व है कि पिछले लगभग 18 वर्षों से एक पाठक एवं लेखक के रूप में मैं भी साहित्यकुञ्ज से जुड़ा हूँ। और साहित्यकुञ्ज के स्वरूप एवं कलेवर में कई, जुड़ाव, बदलाव एवं प्रगति को देखा है। पहले रचनाओं एवं संपादकीय पर टिप्पणी की सुविधा नहीं थी। इसे बाद में जोड़ा गया। अभी आगे साहित्यकुञ्ज को तकनीकी प्रोग्रामिंग, प्रूफरीडिंग तकनीक से सुसज्जित करके विशेषांकों के साथ प्रकाशित करने का प्रयास एवं संकल्प जारी है। आनेवाले महीनों /वर्षों में निश्चित रूप से हीं साहित्यकुञ्ज एक विशेष सज्जा एवं नये स्वरूप सुविधाओं में दिखेगी। मैं पत्रिका के निरंतर प्रगति की कामना करता हूँ। अपने आप में यह हिन्दी साहित्य, लेखकों पाठकों का सौभाग्य तथा संपादक महोदय की एक बहुत बड़ी एवं अद्वितीय उपलब्धि है। आग्रह है संपादकीय शीर्षक "अंतीम संकल्प" की जगह "अगला संकल्प" होता.... । एक बार फिर से नववर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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