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कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रिय मित्रो,

इस अंक के सम्पादकीय में आप से एक विचित्र माँग कर रहा हूँ। मुझे अपनी वह रचनाएँ भेजें जिसमें आपने अधिकतम विराम चिह्नों (पंक्चुएशन) की ग़लतियाँ की हों। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, यह रचनाएँ प्रकाशित नहीं होंगी।

एक सम्पादक आप से विराम चिह्नों की त्रुटियों वाली रचना भेजने के लिए कह रहा है! है न विचित्र विनय? अवश्य ही आप कारण जानने के लिए उत्सुक होंगे।

आप सभी जानते हैं कि पिछले कई वर्षों से मैं विराम चिह्नों की उपेक्षा, वर्तनी में आम त्रुटियों की परवाह न करना इत्यादि पर लिखता रहा हूँ। पिछले सम्पादकीय में मैंने कुछ उपकरणों (Utilities) के विषय में लिखा था जो मैं लेखन को शुद्ध रूप से प्रकाशित करने के लिए बनवा रहा हूँ। आपको बताते हुए मुझे अतीव हर्ष है कि “विराम चिह्न संशोधन उपकरण / पंक्चुएशन प्रूफ़ रीडिंग टूल” लगभग तैयार है। साहित्य कुञ्ज के इस अंक में मैंने बहुत सी रचनाओं के लिए इसका उपयोग किया है। इसमें मुझे लगभग 99% शुद्धिकरण की सफलता मिली है। इसके लिए मुझे हर सम्भावित त्रुटि के लिए “टेबल” बनाने पड़े। मुझे सन्तोष है कि यह परिश्रम एक बार का है। एक बार सही टेबल, सही क्रम में बन गया तो उसे फिर से बनाने में समय नहीं लगाना पड़ेगा। इस चरण में मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है और इसीलिए आपसे विचित्र माँग कर रहा हूँ।

हम सभी लेखक जानते हैं कि हम चाहते हैं, पाठक हमारी रचनाओं को सही रूप में समझे और पढ़े। लेखन का सबसे महत्वपूर्ण अंश होता है ’भाव सम्प्रेषण’। यानी लेखक के विचारों का, भावों का सही सम्प्रेषण। और यह सम्प्रेषण उसी रूप में ग्राह्य हो जिस रूप में, भाव में लेखक ने लिखा। इसके लिए विराम चिह्न का महत्त्व सर्वोपरि हो जाता है। आपने सही भाषा  में लिखा है, आपका शब्द चयन भी सही है पर विराम चिह्न त्रुटिपूर्ण हैं, तो लेखन प्रभावी नहीं होगा। कई बार तो पाठक विस्मित हो जाएगा कि लेखक कहना क्या चाह रहा है? इसलिए हम सबको इस समस्या पर ध्यान देना होगा। जो उपकरण साहित्य कुञ्ज में सबके लिए उपलब्ध किया जाएगा, वह इस दिशा में केवल पहला चरण है।

प्रयास कर रहा हूँ कि अगले अंक यानी दिसम्बर के द्वितीय अंक में एक लघु-पुस्तिका भी आपके लिए इसी विषय पर उपलब्ध हो। विराम चिह्नों के उचित प्रयोग के लिए नियमों की पुस्तिका मैं लिख रहा हूँ। इस पुस्तिका के लिए मैं जिन पुस्तकों की सहायता ले रहा हूँ वह हैं: “The Chicago Manual of Style”, “The Associated Press Stylebook और “United States Government Publishing Office Style Manual”.

निस्संदेह यह पुस्तकें अँग्रेज़ी भाषा के लिए लिखी गई हैं; केवल इसलिए हमें इन्हें निरस्त नहीं करना चाहिए। हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि पूर्ण विराम चिह्न के अतिरिक्त अन्य सभी चिह्न हमने अँग्रेज़ी के ही स्वीकार किए हैं; अतः हमें नियम भी उन्हीं के स्वीकार करने चाहिएँ। इसका मुख्य कारण यह है कि आंग्ल भाषी इनका प्रयोग हम लोगों से पहले करते आ रहे हैं और इस समय इन्हें पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया गया है। लेखन की शैलियों में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में अंतर दिखाई देता है पर व्याकरण के दृष्टिकोण से यह अंतर भी नियमों का पालन करते हैं।

जिन पुस्तकों का मैंने उल्लेख किया है, उनमें से “शिकागो मैन्युल ऑफ़ स्टाइल” प्रकाशन जगत में वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य है। दूसरी पुस्तक “द एसोशिएटेड प्रेस स्टाइलबुक” अधिकतर पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रयोग में आती है। इन दोनों पुस्तकों में बहुत कम अंतर हैं। हम केवल पहली पुस्तक को ही अपना आधार बनाएँगे। तीसरी पुस्तक  यू.एस. के प्रशासन के दस्तावेज़ों के लिए प्रयोग किया जाने वाला वृहद्‌ ग्रंथ है। इसका प्रयोग मैं केवल पहली पुस्तक के नियमों के पुष्टिकरण के लिए कर रहा हूँ।

मेरा प्रयास है कि मैं इस पुस्तक को बिना किसी उलझाव के, सरलतम शैली में आपके लिए प्रस्तुत करूँ। प्रत्येक विराम चिह्न के लिए सही और ग़लत प्रयोग के उदाहरण देने का भी विचार है। एक बार, जब यह पुस्तक आपके समक्ष होगी तो मेरा निवेदन रहेगा कि कृपया इसका अनुसरण करें। ऐसा नहीं है कि आप इस समय इसका आंशिक अनुसरण नहीं कर रहे। आप अनुसरण कर रहे हैं, परन्तु कुछ चिह्न ऐसे हैं जिनके बारे में आप असमंजस की स्थिति में रहते हैं कि क्या यह प्रयोग उचित है? क्योंकि आपके लेखन में मुझे  यह दिख जाता है। मैं स्वयं, जब अपने पुराने लेखन को देखता हूँ, तो निराशा होती है कि मैंने आरम्भ में सही लिखना क्यों नहीं सीखा! इसका एक कारण यह भी था कि स्कूलों में इस विषय पर अधिक ज़ोर ही नहीं दिया गया। 

हालाँकि “विराम चिह्न संशोधन उपकरण” साहित्य कुञ्ज में उपलब्ध होगा, परन्तु आदर्श जगत में हम लिखेंगे ही त्रुटिहीन।

अभी तो मुझे आपकी त्रुटिपूर्ण रचनाओं की आवश्यकता है! आशा है कि आप मुझे कृतार्थ करेंगे।

—सुमन कुमार घई

टिप्पणियाँ

राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" 2021/12/01 11:08 PM

आदरणीय सुमन सर, आपका संपादकीय पढ़ा। आप जिस टूल को हम सबके सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं वह बेहद सराहनीय प्रयास है और युवा लेखकों की यह एक आवश्यकता भी है। आपकी लिखी पुस्तक का इंतजार रहेगा। आपका राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" प्रधान संपादक (साहित्य हंट)

मधु सऺधु 2021/12/01 06:54 PM

हिन्दी भाषा के विराम चिन्हों पर शोध-- एक अनछुए क्षेत्र पर अद्वितीय कार्य-- बधाई .

राजेश'ललित' 2021/12/01 05:56 PM

आदरणीय सुनन जी, यह बहुत महत्वपूर्ण कार्य है जो प्रत्येक लेखक और पाठक के लिये जानना आवश्यक है।लेखक जितना विद्वान हो उससे ग़लती हो ही जाती है।आपके द्वारा विकसित इस तकनीक का लाभ सब उठा सकें यह प्रशंसनीय है।।साधु। राजेश 'ललित'

विजय नगरकर 2021/12/01 02:24 PM

आदरणीय सुमन जी, बहुत महत्वपूर्ण कार्य, हमारे लेखक वर्ग में तकनीकी उपकरणों का प्रयोग बढ़ना चाहिए।कोई विशेष कार्यशाला के अंतर्गत इन तकनीकी सुविधाओं की जानकारी देना जरूरी है।हार्दिक शुभकामनाएं

Sarojini pandey 2021/12/01 10:12 AM

आदरणीय घई साहब सादर नमस्कार बहुत कठिन परिश्रम कर रहे हैं आप हिंदी की सेवा में, इसके लिए अनेक साधुवाद! ईश्वर आपको पूर्ण सफलता दें। विराम चिन्हों के उचित उपयोग से पाठक का आनंद और रचनाकार का संतोष अपने चरम तक पहुंचेगा । अनेक अनेक अनेक साधुवाद

राजनन्दन सिंह 2021/12/01 08:25 AM

विराम चिह्न संशोधन उपकरण (पंक्चुएशन प्रूफ़ रीडिंग टूल”) के सफलतापूर्वक निर्माण एवं 99 प्रतिशत शुद्धता परख की सफलता पर, माननीय संपादक महोदय, श्री सुमन कुमार घई साहब को हार्दिक बधाई एवं हार्दिक सम्मान। इसके साथ हीं आप विराम चिह्नों के उचित प्रयोग के लिए नियमों की एक पुस्तिका भी लिख रहे हैं। यह पुस्तिका अंग्रेजी के तीन महत्वपूर्ण तथा विश्व स्वीकृत मानक पुस्तकोंः “The Chicago Manual of Style”, “The Associated Press Stylebook और “United States Government Publishing Office Style Manual”. पर आधारित होगी। मेरी समझ से वास्तव में यह एक मानक शोध ग्रंथ होगा। जो इंटरनेट पर अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं से गुगल अनुवाद को सपोर्ट करेगा तथा आमतौर पर हिन्दी टाइपिंग में विराम चिन्हों के अभाव या ग़लत प्रयोग से अनुवाद की जो गलतियाँ दिखाई देती है वह लगभग समाप्त हो जाएगी। इतना हीं नही यह उपकरण हिन्दी के लेखक, संपादक, शिक्षक, विद्यार्थी तथा हिन्दी साहित्य के शोधार्थी विद्यार्थीयों के लिए भी बड़ा उपयोगी साबित होगा। बड़ी बात यह है कि संपादक महोदय यह सब कुछ अपने निजी खर्च एवं परिश्रम से कर रहे हैं। पिछले अंक के संपादकीय टिप्पणी में कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा सहयोग का आश्वासन भी देखने पढ़ने को मिला था। मैं इस उपकरण की सफलता पर साहित्यकुञ्ज परिवार को बधाई देना चाहता हूँ तथा संपादक महोदय को इस महान कार्य के लिए सम्मानित करने का प्रस्ताव रखता हूँ। सादर

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