प्रिय मित्रो,
यह वर्ष भी लगभग बीत गया। साहित्य कुञ्ज के वर्ष के अन्तिम अंक का सम्पादकीय लिखने बैठा हूँ, तो लगने लगा है कि समय बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। मेरा वर्ष तो हर महीने का प्रथम अंक और द्वितीय अंक की तैयारी करते हुए और भी जल्दी समाप्त होता है। अगर, अलग दृष्टिकोण से देखा जाए कि समय का रेंगना दुःखदायी हो सकता है, और सुख में समय जल्दी आगे बढ़ जाता है। समय का तीव्र गति से आगे बढ़ जाना व्यस्तता का भी चिह्न है और व्यस्त रहना ही जीवन है।
दिसम्बर का महीना, छोटे होते दिनों और लम्बी होती रातों से आरम्भ होता है और अन्तिम सप्ताह से पहले, जब दिन बड़े होने आरम्भ होते हैं, इसे आगामी वर्ष से बड़ी आशाओं का पूर्वाभास समझा जा सकता है। बात फिर से वही दृष्टिकोण की है। प्रयास यही है कि दृष्टिकोण सकारात्मक ही रहे।
पिछले वर्ष में क्या खोया, क्या पाया का लेखा-जोखा करना पारम्परिक प्रक्रिया है। हम भी अवश्य इसको पूरा करेंगे। सबसे पहले तो हमने इस वर्ष में सही मायनों में कोविड को खो दिया। आमतौर पर खोना नकारात्मक भाव पैदा करता है परन्तु इस बार नहीं; यह सकारात्मक है। गोष्ठियाँ, ज़ूम से निकल कर साक्षात् हो रही हैं, पर इन तीन वर्षों में ऑनलाइन साहित्यिक संचार से भी प्रेम तो हो ही गया है। आपका तो पता नहीं परन्तु मुझे लगने लगा है कि विश्व और भी छोटा हो गया है। सोशल मीडिया के चलते, कुछ प्रसिद्ध नाम भी अपने-से लगने लगे हैं।
साहित्य की बात करें तो मुझे लगता है कि ऑनलाइन देवनागरी का प्रयोग पहले से बढ़ा भी है और बेहतर भी हुआ है। कुछ वर्षों से हिन्दी पर जो संकट के बादल छाए थे वह छिन्न-भिन्न हो चुके हैं। एक बात अवश्य अनुभव हो रही है कि महानगरों में जन्में हुए बच्चे और वयस्क हिन्दी से लगभग टूट चुके हैं और इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर छोटे शहरों और ग्रामीण अँचलों के लोग मोबाइल द्वारा हिन्दी के विश्वपटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। भारत के अहिन्दीभाषी प्रांतरों में भी हिन्दी की पैठ दिखाई दे रही है। एक रोचक बात है कि पाकिस्तानी ख़बरों की चैनलों के वक्ताओं की भाषा में हिन्दी की शब्दों की घुसपैठ होती जा रही है। अचम्भे की बात यह है कि भारतीय समाचारों की भारतीय चैनलों पर ‘इंडिया’ शब्द अधिक सुनाई देता है जबकि पाकिस्तानी चैनलों पर ‘भारत’ अधिक सुनाई पड़ता है। यहाँ हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
पिछले वर्ष साहित्य कुञ्ज में भी विस्तार हुआ है। सक्रिय लेखकों की संख्या बढ़ी है। मिलने वाली रचनाओं में त्रुटियाँ भी कम देखने को मिल रही हैं। आभास होने लगा है कि लेखक सप्रयास शुद्ध लिख रहे हैं, यह सभी साधुवाद के पात्र हैं। साहित्य कुञ्ज के पर्दे के पीछे भी कुछ काम चल रहे हैं। समाचारों और संस्मरणों (विशेषकर यात्रा संस्मरणों) के साथ फोटो गैलरी का प्रचलन बढ़ गया है। आलेख विधा में भी उपविधाओं की संख्या बढ़ी है।
इन दिनों मैं रचनाओं के हिन्दी से अँग्रेज़ी भाषा में अनुवाद के बारे में बहुत सोच रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ कि अँग्रेज़ी साहित्य का हिन्दी अनुवाद प्रचुर मात्रा में होता है, परन्तु हिन्दी साहित्य का अँग्रेज़ी में अनुवाद कम देखने को मिलता है। इस दिशा में साहित्य कुञ्ज में मैं क़दम बढ़ा चुका हूँ। पृष्ठभूमि में ढाँचा तैयार हो रहा है और शीघ्र ही पाठकों को कुछ देखने को मिलेगा। यह आरम्भिक चरण होगा, इसमें परिवर्तन और संशोधन आवश्यकता अनुसार होते रहेंगे। एक तथ्य मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहता हूँ। यह अनुवाद “गूगल ट्रांसलेट” श्रेणी का नहीं होगा। शाब्दिक अनुवाद की अपेक्षा भावानुवाद पर अधिक बल दिया जाएगा। इन अनूदित रचनाओं से हम अहिन्दी भाषी साहित्य प्रेमियों को बता पाएँगे कि वर्तमान हिन्दी साहित्य में क्या रचा जा रहा है। हो सकता है कि इन पाठकों में कोई ऐसा भी हो जो मूल भाषा में रचना को पढ़ने के लिए हिन्दी सीखे। हम कम से कम आशा तो कर ही सकते हैं।
बहुत दिनों से मैं हिन्दी भाषा के प्रूफ़रीडिंग उपकरण की बात कर रहा हूँ। साहित्य कुञ्ज के उपकरण का उपयोग में लगभग एक वर्ष से कर रहा हूँ। इस समय इसके शब्दों की संख्या ६००० को पार कर चुकी है। यानी इतने शब्दों को यह शुद्धिकरण कर सकता है। उपकरण संशोधन प्रक्रिया निरंतर चल रही है। इन दिनों हम लोग इस उपकरण के द्वितीय संस्करण के विषय पर विमर्श कर रहे हैं ताकि यह शीघ्रातिशीघ्र आप लोगों के लिए निःशुल्क उपलब्ध हो सके। इसके द्वारा प्रूफ़रीडिंग में मैं कम से कम ८०% समय की बचत कर रहा हूँ। इसके बाद अगली बड़ी योजना शब्दकोश संकलन की है।
आने वाले वर्ष से बहुत आशाएँ हैं! परमात्मा आप सबको स्वस्थ और सुखी रखे, बस यही कामना है!
—सुमन कुमार घई
टिप्पणियाँ
महेश रौतेला 2022/12/18 10:23 AM
संपादकीय बहुत अच्छा लगा। गूगल अनुवाद तो कभी-कभी होनी की अनहोनी कर देता है।
रामदयाल रोहज 2022/12/15 09:07 PM
गुरुदेव ! हिन्दी के लिए आपकी इतनी अच्छी और आसमान से भी ऊँची सोच को सलाम । ईश्वर आपको लम्बी आयु दें एवं आपका स्वास्थ्य अच्छा रहे । नववर्ष आपके जीवन को खुशियों से भर दें तथा आप हिन्दी भाषा का उपकार करते रहे । धन्यवाद
प्रवीण कुमार शर्मा 2022/12/15 02:13 PM
बहुत ही आशान्वित और सकारात्मकता से भरपूर सम्पादकीय पढ़ कर अच्छा लगा।मैं भी ईश्वर से ये कामना करता हूँ कि नई साल साहित्य कुंज को नई दिशा और नई ऊंचाइयों पर ले जाए।इसके अलावा यही कहना चाहूंगा कि नई साल आपके जीवन को भी स्वस्थ और दीर्घायु प्रदान करे।धन्यवाद।
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Mani Bhushan Mishra 2022/12/20 11:17 AM
बहरूपिया संन्यासी एक लोकप्रिय एवं चर्चित पुस्तक है, जिसमें आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की जीवन का रोचक वर्णन है. कृपया इस पुस्तक को साहित्य कुंज पर सूचीबद्ध करें.