प्रिय मित्रो,
साहित्य कुञ्ज के सभी पाठकों, लेखकों को महानवमी की शुभकामनाएँ।
पुराने मित्र जानते हैं कि मैं आईटी के पाषाण युग से जुड़ा हुआ हूँ। वास्तव में 1975 से 1981 तक मेरा कर्मक्षेत्र भी आईटी ही रहा है। यह बात अलग है कि उस समय इसे आईटी नहीं कहा जाता था। यहाँ तक कि विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने वालों को “कंप्यूटर साईंसिज़” की डिग्री मिलती थी। मुझे याद है कि जब मैं सरकारी विभाग में नौकरी खोजने के सिलसिले में पंजीकृत होने के लिए गया तो उनकी सूची में केवल इलैक्ट्रिकल इंजीनियर या इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर का विकल्प था—कंप्यूटर इंजीनियर या टैक्नीशियन उनकी सूची में नहीं था। झल्ला कर डेस्क पर बैठे महानुभाव ने मुझे इलैक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर की तरह पंजीकृत किया। इसलिए उस युग को आईटी का पाषाण युग न कहें तो क्या कहें?
1983 के अंत में मैं भारत आया था तब दिल्ली में अभी कंप्यूटर का नामोनिशान नहीं था। हाँ, लोगों में एक जिज्ञासा थी कि कंप्यूटर क्या होता है, काम कैसे करता है इत्यादि।
पिछले कुछ दिनों से मन एक बात स्मृति की गहराइयों से फिर सतह पर आ गई है—इसका कारण पिछले कुछ माह का घटनाक्रम है। हम सब जानते हैं कि ट्रंप ने भारत के निर्यात पर टैरिफ़ का युद्ध छेड़ रखा है। उससे प्रभावित होकर एक दिन माइक्रोसॉफ़्ट ने अपने “क्लाउड” पर संचित भारतीय डैटा का स्विच ऑफ़ कर दिया था जो कि उसे कुछ घंटे के बाद फिर से ऑन करना पड़ा। माइक्रोसॉफ़्ट ने या यूँ कहें यू.एस. ने भारत को चेताया कि हम किसी भी समय भारत के व्यवसायिक क्षेत्र में अवरोध पैदा कर सकते हैं। यह केवल शक्ति प्रदर्शन था। भारत के लिए यह जागने की चेतावनी थी। समस्त संसार की कंप्यूटर क्रांति की नींव को रखने वाले श्रमिकों का जन्मदाता देश अपनी संप्रुभता बनाए रखने के लिए एक विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की कृपादृष्टि पर निर्भर है—इस विचार ने मुझे उद्वेलित कर दिया।
उन दिनों इंटरनेट विश्व पटल पर दस्तक दे रहा था। मैं इसकी शक्ति को समझ रहा था। इंटरनेट पर अभी सक्युरिटी सॉफ़्टवेयर भी अपने शैशवकाल में थी। कंप्यूटर साईंस के कुछ विद्यार्थियों के लिए ’हैकिंग’ मनोरंजन का साधन था। आए दिन सरकारी विभागों या बैंकों को हैक किया जाता था। उन दिनों ’ऐप्पल’ के विज्ञापनों में विशेष रूप से लिखा जाता था कि इसका ऑपरेटिंग सिस्टम हैक नहीं हो सकता क्योंकि इनकी प्रोग्रामिंग का कोड ऐप्पल का अपना था—ओपन सोर्स नहीं था। उन दिनों मैं प्रायः सोचा करता था कि जब भी भारत कंप्यूटर युग में आए वह इसी तरह अपने सोर्स कोड के साथ आए ताकि कोई प्रशासनिक व्यवस्था को हैक न कर सके। आज वह दिन आ गया है। माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा दिया गया झटका यह प्रमाणित करता है कि अगर आप उधार की सॉफ़्टवेयर पर निर्भर करते हैं तो ऑन-ऑफ़ का स्विच उन्हीं के हाथ में रहता है, जिनका ऑपरेटिंग सिस्टम है।
परमात्मा को धन्यवाद दें कि इस समय की सरकार सजग है। माननीय अश्विन वैष्णव की “ज़ोहो (zoho)” के संदर्भ में दी गई टिप्पणी ने पूरा खेल बदल दिया है। ज़ोहो को मैं केवल एक छोटी-मोटी कम्पनी समझता था जिसकी मैं पुस्तकबाज़ार.कॉम में ई-मेल यूटिलिटी का निशुल्क प्रयोग करता था। आज मालूम हुआ कि उनकी तो सैंकड़ों ऐप्स हैं जिनसे अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं। यानी माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस की टक्कर की सॉफ़्टवेयर ज़ोहो के पास है। इससे अतिरिक्त भी बहुत सी ऐसी ऐप्स हैं जिनके बारे में मैं अभी नहीं जानता। हमें इस कम्पनी के बारे में जानने की आवश्यकता है।
आज सुबह मुझे ज़ोहो की व्हाट्स ऐप की समकक्ष निःशुल्क यूटिलिटी “Arattai” का पता चला है। मैंने इसे तुरंत अपने मोबाइल और लैपटॉप पर डाउनलोड कर लिया। तब से लेकर अब तक इसका अध्ययन कर रहा हूँ। यह बिल्कुल व्हाट्स ऐप की तरह काम करती है। मैंने इस पर साहित्य कुञ्ज का एक समूह/ग्रुप भी बना लिया है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो आप सभी को इस समूह से जुड़ने के लिए आमन्त्रित करूँगा। धारणा यही है कि अगर एक भारतीय कम्पनी हमें व्हाट्स ऐप के बराबर की सेवाएँ दे रही है तो हम एक विदेशी कंपनी पर क्यों निर्भर करें। आरात्ताई के सभी सर्वर भारत में हैं, यानि भारतीय डैटा भारत में ही रहता है। दूसरा ज़ोहो वायदा करती है कि वह आपका डैटा किसी को बेचेंगे नहीं। अभी इस सुविधा के बारे में बहुत कुछ जानना शेष है। आने वाले दिनों में आपको अवश्य सूचित करूँगा कि क्या हम साहित्य कुञ्ज में एक विदेशी कम्पनी को छोड़ भारतीय कम्पनी को अपनाएगे या नहीं। यह समय बातें छोड़—निर्णय लेने का है। जब जागो तब सवेरा!
अगर आप भी Arattai को डाउनलोड करना चाहें तो यह गूगल प्ले पर उपलब्ध है। इसे माइक्रोसॉफ़्ट स्टोर से भी डाउनलोड कर सकते हैं। इस सुविधा को आप अपनी विभिन्न डिवाइसिज़ को सिंक (Sync) भी कर सकते हैं। नीचे लिंक दे रहा हूँ:
https://apps.microsoft.com/detail/9nfsl94jn89m?launch=true&mode=full&hl=en-us&gl=ca&ocid=bingwebsearch
https://play.google.com/store/apps/details?id=com.aratai.chat&hl=en-US
टिप्पणियाँ
Anima Das 2025/10/02 12:06 AM
सादर प्रणाम सर ????... सुंदर एवं विशेष जानकारी सहित यह सम्पदाकीय अत्यंत महत्वपूर्ण है....। सादर धन्यवाद ????
कृपया टिप्पणी दें
सम्पादकीय (पुराने अंक)
2025
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2024
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2018
2017
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- भाषा में शिष्टता
- साहित्य का व्यवसाय
- उलझे से विचार
विजय नगरकर 2025/10/02 03:39 PM
आदरणीय सुमन कुमार जी,सादर प्रणाम ???? बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है। हमारा देश तभी स्वतंत्र रहेगा जब हम स्वाबलंबी बनकर हमारा आधारभूत ढांचा तैयार करेंगे। विदेशी प्लेटफॉर्म पर भ्रम,अफवाहों का बाजार गर्म रहेगा। ये प्लेटफॉर्म भी धोका दे सकते है।हमारी गाड़ी छूट जाएगी। किसीने कहां है " फूल अगर परदेसी है तो बेवफा जायेंगे, कांटे अगर वतन के है तो गले लगाओ"