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			 पुस्तकबाज़ार.कॉम और विचारों का वृन्दावन प्रिय मित्रो, साहित्य कुंज के पिछले अंक के सम्पादकीय के अन्त में मैंने हिन्दी साहित्य सृजन के सार्वभौमिक होने की बात कही थी। अब उसी विचार को आगे बढ़ाते हुए, विदेशों में हिन्दी साहित्य को सभी के लिये उपलब्ध करवाने के प्रयासों की ओर पाठकों का ध्यान दिलाना चाहूँगा। बात उन दिनों की है जब मैंने साहित्य कुंज अभी आरम्भ ही किया था। उस समय न्यू-यॉर्क से प्रकाशित होने वाली वेबसाईट "बोलोजी.कॉम" (अब हिन्दीनेस्ट.कॉम), दुबई से "अनुभूति-अभिव्यक्ति" शायद ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित हो रही "भारत-दर्शन" ही थीं। भारत से "काव्यालय" और "वगार्थ" ही देखने को मिलती थीं। यह सब अपनी स्मृति के आधार पर ही कह रहा हूँ। अब देखिये इनमें से विदेशों में बैठे हिन्दी साहित्य प्रेमियों के निःस्वार्थ परिश्रम को अगर कोई अनदेखा करे तो मन में टीस तो उठेगी ही। साहित्य कुंज के आरम्भिक दिनों में मुंबई से श्री सूरज प्रकाश अरोड़ा जी ने मुझसे ई-मेल में प्रश्न पूछा था कि "यह सब विदेशों में ही क्यों हो रहा है?" मेरा सीधा सा उत्तर था "साधनों की उपलब्धता"। उन दिनों भारत में कंप्यूटर सुलभ नहीं थे – ऐसा नहीं कहा जा सकता कि भारत में साहित्य प्रेमियों की कमी थी। मुझे याद है कि साहित्य कुंज आरम्भ होने के कुछ समय के पश्चात श्री जय प्रकाश मानस ने "सृजनगाथा" और डॉ. रति सक्सेना ने "कृत्या" की नींव रख दी थी। यह सभी व्यक्तिगत प्रयास थे – किसी को भी संस्थागत सहायता नहीं मिल रही थी। इस समय भी विदेशों में बैठे साहित्य प्रेमी तकनीकी के नई सीमाओं को खोजते हुए साहित्य को विभिन्न माध्यमों से सार्वभौमिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिनों ओकविल (कैनेडा) से डॉ. शैलजा सक्सेना ने "विचारों का वृन्दावन" आरम्भ किया है। इस श्रव्य माध्यम से वह उत्कृष्ट साहित्य को जन मानस तक पहुँचाने का प्रयास कर रही हैं। इसका लिंक साहित्य कुंज के मुख्य-पृष्ठ पर उपलब्ध है। अपने एक प्रयास की पहले भी एक बार चर्चा कर चुका हूँ। एक सॉफ़्टवेयर कंपनी के साथ साझेदारी में हिन्दी की ई-पुस्तकों को बेचने के लिए पुस्तकबाज़ार.कॉम की नींव रखने में आजकल व्यस्त हूँ। पुस्तक प्रकाशन का यह नया माध्यम पुस्तकों की उपलब्धता को सार्वभौमिक बना देता है। इस समय हिन्दी की ई-पुस्तकें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं परन्तु एक बात मुझे निरंतर कचोटती है। पहली तो यह वेबसाईट्स "सेल्फ़ पब्लिकेशन" हैं। कोई भी जाकर अपनी पुस्तक को वहाँ पर लगा सकता है यानी कोई चयन प्रक्रिया नहीं है और न ही कोई संपादन है। परिणाम वही हो रहा है जो कि हिन्दी ब्लॉग का हुआ था – जिसके मन में जो आया, जैसा आया लिख दिया। इससे साहित्य को लाभ कम और हानि अधिक हुई। पुस्तकबाज़ार.कॉम की सभी पुस्तकें चयन प्रक्रिया से गुज़रेंगी। लेखक और पुस्तक बाज़ार के बीच प्रत्येक पुस्तक के लिए एक अनुबंध होगा। लेखक को पुस्तक की बिक्री का 70%मिलेगा। लेखा-जोखा पारदर्शी होगा यानी लेखक अपने एकाउंट को कभी भी देख सकेगा। पैसे का सारा अदान-प्रदान Paypal के द्वारा होगा। लेखकों पहली चयनित पुस्तक निःशुल्क प्रकाशित होगी। वेबसाईट लगभग तैयार है और जो लेखक इस पर अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवाना चाहते हैं उनसे अनुग्रह है कि वह http://pustakbazaar.com पर जाकर रजिस्टर हो जाएँ। शीघ्र ही इन लेखकों से संपर्क करके आगे की प्रक्रिया के बारे में सूचित किया जाएगा। इस लिंक पर जो वेबसाईट आप देखेंगे यह अभी अंतिम प्रारूप नहीं है क्योंकि अभी इस पर काम चल रहा है जो लगभग पूरा हो चुका है। जिन पुस्तकों के कवर आप इस पर देखेंगे वह केवल कवर मात्र ही हैं। इनके पीछे कोई पुस्तक अभी नहीं है। इसके अतिरिक्त आप info@pustakbazar.com पर भी ई-मेल लिख सकते हैं। – सादर  | 
		
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सम्पादकीय (पुराने अंक)
2025
- परिवर्तन ही जीवन है!
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 - हमारे त्योहार—जीवन का उत्सव
 - मानवीय तत्त्व गुम है
 - हिन्दी दिवस पर एक आकलन
 - भारत के 79वें स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर
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 - उचित समय है कर्म फलीभूत होने का
 - गधी लौट कर फिर बड़ के पेड़ के नीचे
 - ट्रंप की देन: राष्ट्रवादी उपभोक्तावाद
 - भारतीय संस्कृति तो अब केवल दक्षिण भारतीय सिनेमा में…
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 - समय की गति और सापेक्षता का सिद्धांत
 - धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का
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 - मनन का एक विषय
 
2024
- अपने ही बनाए नियम का उल्लंघन
 - सबके अपने-अपने ‘सोप बॉक्स’
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 - आंचलिक सिनेमा में जीवित लोक साहित्य, संस्कृति और भाषा
 - अंग्रेज़ी में अनूदित हिन्दी साहित्य का महत्त्व
 - कृपया मुझे कुछ ज्ञान दें!
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 - मित्रो, अपना तो हर दिवस—हिन्दी दिवस होता है!
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 - पुस्तक चर्चा, नस्लीय भेदभाव और विचार शृंखला
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2023
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2022
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 - क्षितिज का बिन्दु नहीं प्रातःकाल का सूर्य
 - शोषित कौन और शोषक कौन?
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 - साहित्य का यक्ष प्रश्न – आदर्श का आदर्श क्या है?
 - साहित्य का राजनैतिक दायित्व
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 - कोरोना का आतंक और स्टॉकहोम सिंड्रम
 - अपनी बात, अपनी भाषा और अपनी शब्दावलि - 1
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