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अनैतिक प्रेम

"मेरी रीतू . . . ओ माय लव आओ मेरी बाँहों में समा जाओ," सुधीर ने रीतू को बहुत ज़ोर से आग़ोश में लिया।

"अरे अरे मेरा दम घुट जाएगा। धीरे-धीरे आशिक़ जी मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ," रीता ने कसमसाते हुए छूटने की कोशिश की।

रीता सुधीर की बाँहों में मछली की भाँति फिसलने लगी किन्तु सुधीर रीता के अंदर समाता चला गया। फिर एक ऐसा तूफ़ान उठा जिसमे रीता का जिस्म और आत्मा दोनों तृप्त हो गए। आज पहली बार रीता ने किसी पुरुष को महसूस किया; उसके अंदर की नारी सुगन्धित होकर महक उठी। आज पहली बार उसे लगा कि वह एक सम्पूर्ण स्त्री है।

शादी के २० साल तक वह सिर्फ़ प्यासी भटकती रही। न शरीर की बुझी न आत्मा की; सिर्फ़ छलावा और अवसरवादिता की शिकार होती रही। पति सिर्फ़ नाम का था; दिन भर दुकान पर पैसों में व्यस्त और रात में नींद में; उसने कभी उसकी परवाह नहीं की। रीतू ने बहुत कोशिश की लेकिन उसके पति की आदतें नहीं बदलीं। फिर उसकी मुलाक़ात सुधीर से हुई। सुधीर एक समाजसेवी था। समाज के निम्न तबक़ों के बच्चों के लिए शिक्षा एवं उनके बेहतर पोषण के लिए अपने एन जी ओ के माध्यम से कार्य करता था। रीता उससे प्रभावित हुई और उस एन जी ओ के लिए कार्य करने लगी। रीता और सुधीर कब प्यार में रँग गए पता ही नहीं चला और एक रात वह सब हो गया जो प्रेमियों के लिए तो सही था किन्तु सामाजिक रूप से अनैतिक कहा जाता है।

दोनों जब तूफ़ान से निकले तो दोनों के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।

"रीतू क्या हमने ये सही किया," सुधीर ने रीता की आँखों में झाँक कर कहा।

"पता नहीं सुधीर लेकिन मैं आज बहुत ख़ुश हूँ," रीता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"लेकिन सामाजिक रूप से तो ये अनैतिक कहा जाएगा," सुधीर ने उदास होकर कहा।

"ये ठीक है कि सामाजिक रूप से यह अमान्य है। लेकिन बीस साल से जो मैं भुगत रही थी उसकी तुलना मैं ये बिलकुल अनैतिक नहीं है," रीतू ने सुधीर का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा।

"अब आगे क्या होगा? हमारा रिश्ता किस ओर जा रहा है?" सुधीर के चेहरे पर चिंता के निशान थे।

"बिलकुल सही जा रहा है और अब हम इस अनैतिक को नैतिक बनाने जा रहे हैं। मैं अपने पति से तलाक़ लेकर तुमसे शादी करूँगी। क्या तुम्हें ये रिश्ता मंज़ूर है?" रीता ने बहुत गंभीरता से सुधीर की ओर देखा।

सुधीर के चेहरे पर आत्मग्लानि की जगह मुस्कराहट थी।

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