आख़िर क्यों
काव्य साहित्य | कविता अमरेश सिंह भदौरिया15 Mar 2020
दग्ध अन्तस्
अतृप्त मन
अंतहीन आशा
प्रणय-पिपासा
किसी से कुछ
पाने की अभिलाषा
किसी की तलाश में
दूर तक जाती नज़र
अकुलाहट
छटपटाहट
चिंता
घुटन
विवशता
बेचैनी
या कि
एक शब्द
मृगतृष्णा
क्या किसी को
अन्तःकरण में
बसाने के बदले
एक साथ
इतनी बड़ी
सज़ा
किसी भी दृष्टि से
तर्कसंगत हो सकती है
गर इसका
उत्तर हाँ में
है तो क्यों
आख़िर क्यों
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