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दिनकर   गहन  अंधेरे   में  है

जनगणमन का सच्चा नायक
मर्यादा   का   ध्वज  संवाहक
रामराज्य  की   लिए  पताका
संवादों    के    घेरे       में  है।
दिनकर   गहन  अंधेरे   में  है।

कर्म-धर्म   की  लेकर   शिक्षा
पग-पग    देती   अग्निपरीक्षा
सहमी-सहमी   जनक  दुलारी
दंद-फंद    के    फेरे     में  है।
दिनकर   गहन  अंधेरे   में  है।

संघर्षों   का   खेल    खेलकर
रीति-नीति  का  दंश   झेलकर
टूट चुका    अंदर    से    होरी
अवसादों    के   घेरे     में  है।
दिनकर   गहन  अंधेरे   में  है।

हार-जीत     का    ताना-बाना
साँप-सीढ़ी   का  खेल  पुराना
विषधर भी सब समझ  गए हैं
क्या   करतूत    सपेरे   में  है।
दिनकर   गहन  अंधेरे   में  है।

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टिप्पणियाँ

Saurabh shukla 2019/03/01 05:09 AM

बहुत खूब।सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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