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शाम ढले मधुशाला

सुबह-सुबह मंदिर में दर्शन
शाम ढले मधुशाला,
तन-से बगुला वरन बने
मन-कौवे-से भी काला,


आदर्शों में पूज रहे 
गाँधी जी की तस्वीरें 
मौक़ा मिलने पर करते,
घोटाले में घोटाला,


हमको भी अपना कहते
तुमको भी अपना कहते,
सबसे जोड़ रहे हैं रिश्ता
रोटी-बोटी वाला,


गाँव-गाँव में गली-गली में
घर-घर जाकर कहते,
मैंने भी हाथो में थामी
लोकतंत्र की माला,


सपथ-सत्य की खाते 
लेकर मन-में सेवा भाव,
अपनी हर चालों में चलते
पाशा-शकुनी वाला,


अपने चारों ओर लगे हैं
प्रहरी वर्दी-वाले,
पर ख़ुद को कहते 
मैं हूँ तेरा-रखवाला,


मौसम का अनुमान लगाते
वो पुरवाई के रुख़ पर,
सपनों की फूली फुलवारी में
"अमरेश" गिरा कब पाला।

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