खाद पानी
बाल साहित्य | बाल साहित्य लघुकथा डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Apr 2021
"उठो चुन्नू आज स्वतंत्रता दिवस है तुम्हे स्कूल नहीं जाना क्या?" मम्मी ने चुन्नू को आवाज़ लगाई।
"नहीं मम्मी मैं नहीं जाऊँगा," चुन्नू ने अधनींदे स्वर में उत्तर दिया।
"पर क्यों बेटा ये हमारा राष्ट्रीय पर्व है इसे उतने ही सम्मान से मनाना चाहिए जितने सम्मान से हम दीपावली मनाते हैं," मम्मी ने चुन्नू को समझाते हुए कहा।
"पर मम्मी हम तो बच्चे हैं हमें क्यों ज़रूरी है ये पर्व मनाना," चुन्नू ने अनमने स्वर में कहा।
"अच्छा चुन्नू एक बात बताओ तुम पौधों में खाद-पानी क्यों देते हो?" मम्मी ने मुस्कुराते हुए चुन्नू से पूछा।
"अरे मम्मी तुम भी कितनी बुद्धू हो हम पौधों को इसलिए खाद पानी देते हैं जिससे वो बड़े होकर ख़ूब तंदुरुस्त पेड़ बने।"
"यही बात है बेटा ये राष्ट्रीय पर्व भी पानी और खाद की तरह हैं और तुम नन्हे पौधे; अभी से तुम राष्ट्रप्रेम की भावनाएँ अपने अंदर लाओगे तभी तुम भविष्य में अच्छे नागरिक बन सकोगे। क्या तुम अपने दादाजी जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं बनना चाहोगे?" मम्मी ने चुन्नू के सर पर हाथ फेर कर प्यार से समझाया।
चुन्नू तुरंत बिस्तर से स्प्रिंग की तरह उछला, "मम्मी मुझे जल्दी से तैयार कर दो मैं परेड देखने के लिए मैदान जाऊँगा।"
मम्मी मुस्कुराते हुए चुन्नू को तैयार कर रही थी।
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