पतंग
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Feb 2021
मुझे पतंग उड़ाना है।
आसमान तक जाना है।
रंग बिरंगी कितनी प्यारी।
आसमान में उड़ती न्यारी।
लहराती बलखाती झूमे।
नीचे आये ऊपर घूमें।
कितनी लम्बी इनकी पूंछें।
आसमान की जैसे मूंछें।
गोता खाकर नीचे आती।
फिर लहराकर ऊपर जाती।
नीचे गिरना ऊपर चढ़ना।
आगे बस आगे ही बढ़ना।
यह पतंग सिखाती है।
मेरे मन को भाती है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
कविता
लघुकथा
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
दोहे
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
व्यक्ति चित्र
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
कहानी
किशोर साहित्य नाटक
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}