छूट गए सब
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुशील कुमार शर्मा5 Mar 2016
जो छोड़ा उसे पाने का मन है।
जो पाया है उसे भूल जाने का मन है।
छोड़ा बहुत कुछ पाया बहुत कम है।
खर्चा बहुत सारा जोड़ा बहुत कम है।
छोड़ा बहुत पीछे वो प्यारा छोटा सा घर।
छोड़ा माँ बाबूजी के प्यारे सपनों का शहर।
छोड़े वो हमदम वो गली वो मोहल्ले।
छोड़े वो दोस्तों के संग दंगे वो हल्ले।
छोड़े सभी पड़ोस के वो प्यारे से रिश्ते।
छूट गए प्यारे से वो सारे फ़रिश्ते।
छूटी वो प्यार वाली मीठी सी होली।
छूटी वो रामलीला छूटी वो डोल ग्यारस की टोली।
छूटा वो राम घाट वो डंडा वो गिल्ली।
छूटे वो "राजू" वो "दम्मू" वो "दुल्ली"।
छूटी वो माँ के हाथ की आँगन की रोटी।
छूटी वो बहनों की प्यार भरी चिकोटी।
छूट गई नदिया छूटे हरे भरे खेत।
ज़िंदगी फिसल रही जैसे मुट्ठी से रेत।
छूट गया बचपन उस प्यारे शहर में।
यादें शेष रह गईं सपनों के घर में।
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