आकाशगंगा
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुशील कुमार शर्मा1 Apr 2021
तुम कौन सी मशीन हो ?
विगत पच्चीस सालों से
अनवरत अथक
दे रही हो खाद पानी
बनी हो अक्ष और
घूम रहें हैं सारे रिश्ते नाते
तुम्हारे ही इर्दगिर्द
किसी आकाश गंगा सी
जिसमें जड़े हैं सारे रिश्ते
चमकते सितारों से।
हम सब बस समझते हैं तुम्हें मशीन
जो चलती रहती है रातदिन
बग़ैर रुके बगैर थके
तुम्हारी भावनाएँ, तुम्हारे जज़्बात
तुम टाँग देती हो
किचिन में लटके कपड़ों से
जिनसे गर्म पतीलीयाँ उतारी जाती हैं
हमारे हर दुःख हर कष्ट को
सोख लेती हो मरुथल के रेत सी
और जलती रहती हो बियाबान में
तुम्हारे अधूरेपन में
पूरे होने की ख़्वाहिश
दफ़्न हो जाती है
उम्र, घर, बच्चे
समाज रिश्तेदारों के नीचे
इन सबके बीच
तुम्हारा अस्तित्व
दर्पण के टुकड़ों की मानिंद
बिखरा है तुम्हारे चारों ओर
और तुम्हारा अस्तित्व
उन टुकड़ों में खो जाता है
चाहता हूँ उन टुकड़ों को
जोड़ कर तुम्हें दूँ
एक नई शक्ल
जो बिल्कुल तुम्हारी हो।
और जिस पर सिर्फ़
तुम्हारे हस्ताक्षर हों।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
गीत-नवगीत
कहानी
कविता
- आकाशगंगा
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- कबीर छंद – 001
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- काल डमरू
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- छूट गए सब
- ठण्ड
- तुम्हारे जाने के बाद
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बसंत बहार
- मेरे लिए एक कविता
- वसंत के हस्ताक्षर
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सीता का संत्रास
- सुनो प्रह्लाद
दोहे
कविता-मुक्तक
सामाजिक आलेख
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गौरैया तुम लौट आओ
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- भारतीय जीवन मूल्य
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
बाल साहित्य लघुकथा
साहित्यिक आलेख
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- रामायण में स्त्री पात्र
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
बाल साहित्य कविता
कविता - हाइकु
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
ललित निबन्ध
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}