शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुशील कुमार शर्मा15 Jan 2021
शुभ्र चाँदनी सी लगती हो,
किस के लिए सँवरती हो।
मन ही मन तुम मुझको चाहो,
कहने से क्यों डरती हो।
जब भी रस्ता तेरा निकलूँ,
छुप छुप देखा करती हो।
खो जाता हूँ तेरे अंदर,
लब पर लब जब धरती हो।
मेरा मन तुमसे है उलझा,
तुम भी मुझ पर मरती हो।
रूठा करती हरदिन मुझसे,
उतना चाहा करती हो।
जब भी तन मन से थक जाता,
मुझ में जीवन भरती हो।
तुम मेरे मन की कविता हो,
मन मधुवन से सरती हो।
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