अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं मिलूँगा तुम्हें

सुनो! घबराना मत तुम
घर की इन दीवारों में जीवित हूँ मैं।
कभी आईने के सामने
हो जाना खड़े और देखना ख़ुद को
मैं नज़र आऊँगा।
 
किताब के हर पन्ने पर जीवित हूँ मैं।
विद्यालय के कक्षों में . . . व्याख्यानों में
ब्लैक बोर्ड पर लिखे शब्दों में
कक्षा में बैठे हर छात्र की
आँखों में झाँकना
तुम मुझे पाओगे हँसते हुए।
 
जीवित हूँ मैं तुम्हारे आँगन की फुलवारी में।
तुलसी के पौधे में ध्यान से
देखना मेरे अक्स।
वसंत के फूलों में देखना
जीवित मिलूँगा मैं तुम्हें।
 
मैं जीवित हूँ तुम्हारी माँ की आँखों में।
उसकी उन चूड़ियों में जो उसने
सहेज कर रखी हैं अपने बक्से में।
जीवित हूँ मैं राघव में . . . 
मेरी छवि देखना तुम
बिट्टू और किट्टू में . . . 
जीवित मिलूँगा तुम्हें।
 
जब भी ऊँचा उठोगे . . . मुस्कराओगे।
उस मुस्कराहट में जीवित मिलूँगा तुम्हें।
असफलता अपमान के आँसू
जब भी गिरेंगे तुम्हारी आँखों से
देखना प्रतिबिम्ब मेरा उन आँसुओं में।
जीवित मिलूँगा तुम्हें।
 
कर्तव्य पथ पर डगमगाने लगो।
या ज़िंदगी के झँझावातों में
उलझ जाओ घबराना नहीं
जीवित मिलूँगा तुम्हें, 
तुम्हारा हाथ थामे हुए।

विडियो

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

काव्य नाटक

गीत-नवगीत

दोहे

लघुकथा

कविता - हाइकु

नाटक

कविता-मुक्तक

वृत्तांत

हाइबुन

पुस्तक समीक्षा

चिन्तन

कविता - क्षणिका

हास्य-व्यंग्य कविता

गीतिका

सामाजिक आलेख

बाल साहित्य कविता

अनूदित कविता

साहित्यिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

कहानी

एकांकी

स्मृति लेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

ग़ज़ल

बाल साहित्य लघुकथा

व्यक्ति चित्र

सिनेमा और साहित्य

किशोर साहित्य नाटक

ललित निबन्ध

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं